कल्पनात्मक निबंध ( यदी पाठशाला न होती ) a re kou Do answer..
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bhai pls mere questions report kr do na...
Tanu will scold me if she see this questions...
and sry...
I am in cls I can't answer...
uske bd ye krne hai
सीखने वाले के प्रति सहज आदर का भाव होता
इसके अलावा भी तमाम संभावनाएं हैं कि अगर पाठशाला न होती तो कोई शिक्षक न होता और कोई छात्र न होता। सब अपने-अपने नाम से जाने जाते। जिससे जो सीखता उसके प्रति आदर का भाव रखता। चीज़ों को बेहतर तरीके से करने का रास्ता खोजने पर उसकी तारीफ होती। सबके बीच में एक अलग तरीके का संवाद होता, जो कक्षाओं में होने वाले संवाद से ज़्यादा सहज होता। आसानी से समझ में आने वाला होता। ऐसे में शायद लोगों के घुलने-मिलने को लेकर भी तमाम तरह के आग्रह और पूर्वाग्रह समाज में स्थापित हो गए होते कि बच्चों को ऐसा करना चाहिए, उनसे मिलना चाहिए, उनके पास कुछ सीखने के लिए जाना चाहिए, ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए।
अगर स्कूल नहीं होते तो दिनभर बच्चों को स्कूल में बैठना नहीं पड़ता। छुट्टी होने के बाद बच्चों को जिस खुशी का अहसास होता है, वह खुशी नहीं होती। कई सालों की पढ़ाई के दौरान ज़िंदगी का जो लुफ्त होता है, वे मजे नहीं होते। न कोई शिक्षक दिवस होता, न कोई जयंती होती। न ढेर सारी उबाऊ आदर्शवादी बातें होतीं। न परीक्षा होती और न ही नंबरों की रेस। नंबरों के आधार पर कोई बच्चा तेज़ या कमज़ोर नहीं माना जाता। ऐसे में बाकी कौशलों और व्यावहारिक सूझ-बूझ का ज्यादा महत्व होता। समाज की आवश्यकताओं के अनुसार और पारिवारिक परंपराओं के अनुरूप बच्चे अपने जीवन के अनुभवों को खास दिशा देते। बड़ों की ज़िंदगी पर भी इस बात का काफी फर्क पड़ता। सरकारों को इस बात का रोना नहीं, रोना पड़ता कि शिक्षा के लिए बजट कम है। ऐसे में बजट का बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाता।
इस तरह की तमाम संभावनाएं हो सकती हैं। तो अपने हिस्से में आप भी सोचिए कि स्कूल नहीं होते तो क्या होता? क्या हमारे आसपास की दुनिया ऐसी होती या फिर काफी अलग होती।