कला से प्राप्त आनंद अवर्णनीय है
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मानव जीवन मे सदा ही कला की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पहले मानव मिट्टी के बर्तनों पर चित्रकारी तथा मिट्टी से पुती दीवारो पर तोता मैना बनाता था । मानसिक तृप्ति तथाअपूर्व आनन्द के लिये मानव अपने मन मे कल्पनाओ का संसार रचता रहता है और बाद मे उसे फ़िरचित्रकला के रूप मे ढाल लेता है। ... कला से प्राप्त आनंद अवर्णनीय होता है।
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आप जिसकी भी प्रशंसा करते हैं वह एक कला बन जाती है। यदि आपको पत्थरों का एक ढेर दिखे तो इसे आप एक ढेर ही समझोंगे, लेकिन यदि किसी ने उन्ही टुकड़ों को व्यवस्थित संजो कर रख दिया तो आप उसकी प्रशंसा करेंगे, वह एक कलाकृति बन गयी। इसी प्रकार कागज़ पर कुछ रंग बिखेर देने से और उसमे एक अर्थ देख पाने से उसकी प्रशंसा होती है; वह भी एक कला का नमूना बन जाता है। और कविताएं मन की गहराईयों में पनपती हैं।
जब श्वास एक विशेष तारतम्य में चलती हो, जब एक विशेष नाड़ी खुल जाए, तब कुछ शब्द बाहर आते हैं जिसे आप लिख देते हैं। यह एक उपहार है, कल्पना कर सकना एक उपहार है। ये वह जरिया है जिस से चेतना और मन अपने आप को अभिव्यक्त करते हैं, और जब आप इसकी प्रशंसा करते हैं तो यह एक कला बन जाती है। प्रशंसा के नाम पर यूँ ही कुछ शब्द बोल देना काफी नहीं है, इसके लिए थोड़ी बुद्धिमत्ता की आवश्यकता होती है। जीवन भी एक कला है। जीवन जीने की कला। कला एक व्यवसाय हो सकता है लेकिन व्यवसाय को कला सिर्फ इसी सन्दर्भ में कह सकते हैं जब आज के जटिल और भ्रष्ट माहौल में भी किस तरह नीतिगत रह कर कुशलता के साथ सब कुछ व्यवस्थित रखें; उसे यह आता हो।
व्यवसाय में यह थोडा भिन्न हो जाता है क्योंकि हमें बाज़ार के अनुसार चलना होता है, आप यह नहीं कह सकते: मुझे बाज़ार की कोई परवाह नहीं है, मैं वही करूंगा जो मुझे पसंद है। नहीं, बिजनेस थोड़ा अलग तरह की कला है, यह फाईन आर्ट के सामान नहीं है। फाईन आर्ट में आप दूसरों की तरफ देखे बिना अपने अन्दर की सृजनात्मकता को खिलने देते हैं। व्यवसाय में लोगों और बाज़ार के साथ सरोकार रखना होता है, अत: आपको मालूम होना चाहिए कि वे क्या कर रहे हैं; अपना सामान कैसे और किस भाव में बेच रहे हैं; और इसी तरह के अन्य विवरण