कलेवा को संस्कृत में क्या कहते हैं
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कलेवा संस्कृत [संज्ञा पुल्लिंग]
1. सुबह का जलपान ; नाश्ता ; उपाहार
2. यात्रा के दौरान खाने के लिए लिया गया खाद्य पदार्थ ; पाथेय
3. विवाह की एक रस्म।
कलेवा- संज्ञा पुलिंग [संस्कृत कल्पवर्त, प्रा० कल्लवट्ट]
1. वह हलका भोजन जो सबेरे बाँसी मुँह किया जाता है । नहारी । जलपान । उदाहरण-छगन मगन प्यारे लाल कीजिए कलेवा ।-सूर (शब्द०) । क्रिया प्र०-करना ।-होना । मुहावरा- कलेवा करना=निगल जाना । खा जाना । उदाहरण- जिन भूपन जग जीति बाँधि जम अपनी बाँह बसायो । तेऊ काल कलेवा कीन्हों तू गिनती कब आयो?-तुलसी (शब्द०) ।
2. वह भोजन जो यात्री घर से चलते समय बांध लेते हैं । पाथेय । संबल ।
3. विवाह के अनंतर एक रीति जिसमें वर अपने साखाओं के साथ ससुराल में भोजन करने जाता है । खीचड़ी । बासी । विशेष-यह रीति प्रायः विवाह के दूसरे दिन होती है ।
पुल्लिंग [संज्ञा शब्द - कल्यवर्त, प्रा० कल्लवह]
1. सवेरे किया जाने वाला जलपान या हलका भोजन। मुहावरा—कलेवा करना बहुत ही तुच्छ या साधारण समझ कर खा या निगल जाना।
2. वह भोजन जो यात्री कहीं जाने के समय रास्ते के लिए अपने साथ रख लेते हैं।
3. विवाह के बाद की एक रसम जिसमें वर अपने साथियों के साथ ससुराल में जल-पान या भोजन करने जाता है। खिचड़ी।
कलेवा को संस्कृत में हूफेति कहते हैं ।