कलगी बाजरे कविता का भावर्थ क्या है
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यह कविता मूलतः प्रेम और प्रकृति को अभिव्यक्त करती है। कवि इस कविता में प्रेयसी को किसी प्रकार के रीतिकालीन उपमानो तरीका, कमलिनी, चम्पे की कली जैसे सीमित उपमानो से नहीं सजाना चाहता। वह यदि उसे कलगी बाजरे की या बिछली घास कहता है तो उसे अपना प्रेम कहीं अधिक विस्तृत व फैला दिखाई देता है।
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यह कविता मूलतः प्रेम और प्रकृति को अभिव्यक्त करती है। कवि इस कविता में प्रेयसी को किसी प्रकार के रीतिकालीन उपमानो तरीका, कमलिनी, चम्पे की कली जैसे सीमित उपमानो से नहीं सजाना चाहता। वह यदि उसे कलगी बाजरे की या बिछली घास कहता है तो उसे अपना प्रेम कहीं अधिक विस्तृत व फैला दिखाई देता है।
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