कन्नड़ के ज्ञानपीठ पुरस्कृत साहित्यकार कौन कौन है ।
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कन्नड़ भाषा के मशहूर लेखक अनंतमूर्ति की रचनाओं का अँगरेज़ी में अनुवाद हुआ और वह कन्नड़ साहित्य के नए आंदोलन 'नव्या' के प्रणेता रहे. अनंतमूर्ति को 1994 में कन्नड़ साहित्य में उनके योगदान और आम आदमी के लिए लिखने की उनकी नई सोच के लिए साहित्य क्षेत्र के सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ से नवाजा गया.
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ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है।[1] भारत का कोई भी नागरिक जो आठवीं अनुसूची में बताई गई २२ भाषाओं में से किसी भाषा में लिखता हो इस पुरस्कार के योग्य है। पुरस्कार में ग्यारह लाख रुपये की धनराशि, प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा दी जाती है। १९६५ में १ लाख रुपये की पुरस्कार राशि से प्रारंभ हुए इस पुरस्कार को २००५ में ७ लाख रुपए कर दिया गया जो वर्तमान में ग्यारह लाख रुपये हो चुका है। २००५ के लिए चुने गये हिन्दी साहित्यकार कुंवर नारायण पहले व्यक्ति थे जिन्हें ७ लाख रुपए का ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।[2] प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार १९६५ में मलयालम लेखक जी शंकर कुरुप को प्रदान किया गया था। उस समय पुरस्कार की धनराशि १ लाख रुपए थी। १९८२ तक यह पुरस्कार लेखक की एकल कृति के लिये दिया जाता था। लेकिन इसके बाद से यह लेखक के भारतीय साहित्य में संपूर्ण योगदान के लिये दिया जाने लगा। अब तक हिन्दी तथा कन्नड़ भाषा के लेखक सबसे अधिक सात बार यह पुरस्कार पा चुके हैं। यह पुरस्कार बांग्ला को ५ बार, मलयालम को ४ बार, उड़िया, उर्दू और गुजराती को तीन-तीन बार, असमिया, मराठी, तेलुगू, पंजाबी और तमिल को दो-दो बार मिल चुका है।[3] प्रख्यात मलयाली कवि अक्कीतम अच्युतन नंबूदिरी को 55वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। ज्ञानपीठ चयन बोर्ड ने उनका चयन वर्ष 2019 के ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिये किया है।