कन्यादान ' कविता का कवि वस्त्राभूषणों को नारी जीवन का बंधन क्यों
मानता है?
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ससुराल में अच्छे वस्त्राभूषणों के मोह में स्त्री प्राय: दासतामय बन्धन में पड़ जाती है। इसलिए वस्त्राभूषणों को शाब्दिक भ्रम कहा गया है।
सामाजिक व्यवस्था के तहत स्त्रियों के प्रति जो आचरण किया जा रहा है | उसके चलते अन्याय न सहन करने के लिए सचेत किया गया है क्योंकि समाज में लड़कियों के साथ में इतना अन्याय होता है कि वह उनको चुपचाप चारदीवारी के अंदर ही सहकर घुट घुट कर अपना जीवन जीती हैं।
‘लड़की जैसी दिखाई मत देना’ से कवि का आशय है कि समाज-व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के लिए जो प्रतिमान गढ़ लिए गए हैं, वे आदर्शों के आवरण में बंधन होते हैं। लोग स्त्रियों की कोमलता को कमजोरी समझते हैं। माँ के माध्यम से कवि ने लड़की को सलाह दी है कि उसे लड़कियों के विशेष गुण शालीनता, विनम्रता आदि तो धारण करने चाहिए परन्तु लड़कियों को कमज़ोर, अबला या असहाय प्रदर्शित करने वाले कार्यों या भावों से बचना चाहिये। उसे खुद को कमज़ोर नहीं दिखाना चाहिए।
कभी अपने रूप-सौंदर्य पर गर्व न करे।
वह अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करे, कभी भी कमजोर बन कर आत्मदाह न करे।
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रम और बंधन हैं, अत: उनके मोह में न पड़े।
लड़की की कोमलता व लज्जा आदि गुणों को अपनी कमजोरी न बनने दे।।
अपना सौम्य व्यवहार बनाए रखे।
ससुराल में गलत व्यवहार का विरोध करे।
अपनी और अपने परिवार की मरियादा को बनाए रखे।
आग रोटियां सेंकने के लिए है ना जलने के लिए।