कन्यादान कविता में लड़की को किस प्रकार के सुखो का पता था।। कवि यहां क्या कहना चाहती है??
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मां ने लड़की को अपनी पूंजी की तरह संभाल कर रखा था उसने उसे बड़े लाड प्यार से पाला था लड़की ने अपने मायके में सिर्फ सुख ही सुख देखा था इसलिए उसे सुख का पता तो चलता था लेकिन दुख बांटना नहीं आता था
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कन्यादान कविता माँ अपनी बेटी के बारे बतातीं है कि उसे अभी सांसारिक व्यवहार का, जीवन के कठोर यथार्थ का ज्ञान नहीं था। बस उसे वैवाहिक सुखों के बारे में थोड़ा-सा ज्ञान था। जीवन के प्रति लड़की की समझ सीमित थी। अर्थात् वह विवाहोपरांत आने वाली कठिनाइयों से परिचित नहीं थी। साथ ही वह समाज के छल-कपट को समझ नहीं सकती ।
कन्यादान कविता
इस कविता में उस दृश्य का वर्णन है जब एक माँ अपनी बेटी का कन्यादान कर रही है। बेटियाँ ब्याह के बाद पराई हो जाती हैं। जिस बेटी को कोई भी माता पिता बड़े जतन से पाल पोसकर बड़ी करते हैं, वह शादी के बाद दूसरे घर की सदस्य हो जाती है। इसके बाद बेटी अपने माँ बाप के लिए एक मेहमान बन जाती है। इसलिए लड़की के लिए कन्यादान शब्द का प्रयोग किया जाता है। जाहिर है कि जिस संतान को किसी माँ ने इतने जतन से पाल पोस कर बड़ा किया हो, उसे किसी अन्य को सौंपने में गहरी पीड़ा होती है। बच्चे को पालने में माँ को कहीं अधिक दर्द का सामना करना पड़ता है, इसलिए उसे दान करते वक्त लगता है कि वह अपनी आखिरी जमा पूँजी किसी और को सौंप रही हो।
कन्यादान कविता
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कन्यादान कविता के अनुसार
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