Hindi, asked by aadvikchauhan77, 6 months ago

'कन्यादान' कविता स्त्री जीवन के प्रति संवेदना को व्यक्त करती है ? 'कन्या के साथ जुड़े
'दान शब्द के औचित्य पर विचार करते हुए अपनी मत लिखिए।​

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Answered by shishir303
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‘कन्यादान‘ कविता स्त्री के प्रति संवेदना को व्यक्त करती है और यह बताती है कि इस समाज में स्त्रियों को कमजोर बना कर सजावट की वस्तु की तरह पेश किया जाता है। उन्हें केवल घर के कामकाज, रूप-सौंदर्य, वस्त्र-आभूषण आदि तक ही सीमित सीमित कर दिया जाता है। उन्हें मानव ना समझ कर पशुओं के जैसा समझा जाता है और उनकी अपनी भावना और इच्छाओं की कोई कद्र नहीं की जाती। उन्हें बचपन से यही सिखाया जाता है कि उन्हें पुरुष के अनुसार जीना है। जो पुरुष को अच्छा लगे उन्हें वैसा आचरण करना है। यह बातें स्त्री की गरिमा के विरुद्ध जाती हैं।

कन्या के साथ जुड़े ‘दान’ शब्द का औचित्य हमारे मतानुसार आज की परिस्थिति में ठीक नहीं है। यह ‘दान’ शब्द नारी पर एक व्यंग के समान है, उसकी गरिमा को कम करने वाला प्रतीत होता है। कन्या एक जीता जागता हाड़-माँस का मानव है। वह कोई वस्तु नहीं, जिसे किसी को भी दान दे दिया जाए। मनुष्य का दान करना एक सभ्य समाज की परिकल्पना नहीं हो सकती। हर मनुष्य जिसने जन्म लिया है, उसे अपनी स्वतंत्रता पूर्वक जीने का पूर्ण अधिकार होना चाहिए। कोई अन्य मनुष्य उसको इसी अन्य व्यक्ति को दान नहीं कर सकता। इसलिये कन्या के साथ दान की बात करना उचित नहीं है।

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