कण्टकेनैव कण्टकम् शिक्षासहितं लिखत -
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कण्टकेनैव कण्टकम् Summary
मध्य प्रदेश के डिण्डोरी जिले में परधानों के मध्य अनेक लोककथाएँ प्रचलित हैं। इनमें एक कथा है-धर्म में धक्का तथा पाप में पुण्य। यह कथा पञ्चतन्त्र की शैली में लिखी गई है। इस कथा में यह बताया गया है कि संकट में पड़ने पर भी चतुराई और प्रत्युत्पन्नमति से उस संकट से निकला जा सकता है। कथा का सार इस प्रकार है कोई चञ्चल नाम का शिकारी था। एक बार उसने वन में जाल बिछाया। उस जाल में एक बाघ फँस गया।
बाघ की प्रार्थना पर शिकारी ने बाघ को जाल से बाहर निकाल दिया। बाघ ने शिकारी से पानी माँगा। पानी पीकर बाघ शिकारी को खाने के लिए दौड़ा। बाघ की कृतघ्नता से हताश शिकारी नदी के जल के पास गया। नदी का जल कहने लगा कि यह लोक अत्यधिक स्वार्थी है। लोग जल पीते हैं और मुझे ही गन्दा करते हैं। उसकी बात न करते हुए वृक्ष कहने लगा कि लोग मेरी छाया में बैठते हैं तथा मेरे फल खाते हैं और मुझे ही काटते हैं।
कण्टकेनैव कण्टकम्
तब शिकारी ने अपनी व्यथा एक लोमड़ी को सुनाई। लोमड़ी ने अपनी तीव्र बुद्धि का परिचय देते हुए बाघ को पुनः जाल में फँसा दिया। इस प्रकार लोमड़ी की बुद्धिमत्ता से शिकारी के प्राण बच गए।