कनक कटोरा प्रातही, दधि, घृत सु मिठाई
खेलत खात गिरावहीं झगरत दोउ भाई
अरस परस चुटिया गहै, बरजति है माई
महा ढीठ मानै नहीं कछु लहुर बड़ाई।
हँसि कै बोलि रोहिनी, जसुमति मुसुकाई
जगन्नाथ धरनी धरहि, सूरज बलि जाई।।
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