Kanoon tatha swatantrata ka sambandh likhiye
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कानून अनिवार्य होता है अर्थात् नागरिकों को उसके पालन करने के चुनाव की स्वतंत्रता नहीं होती। पालन न करने वाले के लिए कानून में दण्ड की व्यवस्था होती है। लेकिन, कानून केवल दण्ड ही नहीं देता।
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राजनीति शाश्त्र के साहित्य में स्वतंत्रता और संप्रभुता के दोनों सिद्धांतों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। संप्रभुता के बिना, एक राज्य के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती है। राज्य की संप्रभुता का प्रगटावा सरकार द्वारा तय किए गए कानूनों द्वारा किया जाता है। कुछ विचारकों का मानना है कि राज्य के कानून व्यक्ति की स्वतंत्रता को नष्ट करते हैं। इस राय के विपरीत, कुछ अन्य लेखकों का विचार है कि स्वतंत्रता और राज्य के कानून एक दूसरे के खिलाफ नहीं हैं, ब्लकि सहयोगी है। ऐसे विद्वानों का विचार है कि राज्य के कानून स्वतंत्रता को नष्ट नहीं करते हैं, बल्कि इसे संभव बनाते हैं और इसकी रक्षा करते हैं। उनके विचार में, जहां कानून मौजूद नहीं है, वहां स्वतंत्रता नहीं है।स्वतंत्रता और राज्य के कानून परस्पर विरोधी हैं - कुछ विद्वानों का तर्क है कि राज्य के कानून और व्यक्ति की स्वतंत्रता में कोई सुमेल नहीं हो सकता हैं क्योंकि इन दोनों में परस्पर विरोधता है। अराजकतावादियों (Anarcchists) और व्यक्तिवादियों (Individualists) ने विशेष रूप से ऐसा विचार व्यक्त किया है। अराजकतावादियों का मत है कि राज्य को समाप्त कर देना चाहिए, क्योंकि राज्य के कानून व्यक्ति की स्वतंत्रता को नष्ट करते है। व्यक्तिवादियों का यह विचार है कि राज्य का कानून व्यक्ति की स्वतंत्रता को नष्ट करते है कयोंकि राज्य के कानूनों द्वारा व्यक्ति पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाए जाते हैं। इसी कारण व्यक्तिवादी राज्य को एक बुराई मानते है। व्यक्तिवादी राज्य को समाप्त नहीं करना चाहते है क्योंकि वह राज्य के अस्तित्व को कुछ महत्वपूर्ण चीजों के लिए आवश्यक मानते है, लेकिन वह राज्य को ऐसे काम देने के पक्ष मे नहीं है जो व्यक्तियों की स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं। इसके अलावा अराजकतावादीयों और व्यक्तिवादियों के इलावा कुछ अन्य विचारकों भी है, जो राज्य के कानूनों को व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए घातक मानते है।
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