Hindi, asked by Dhimanmitali93, 9 months ago

Kanya brun hatya in hindi shorter and essay essay

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Answered by riyaz6595
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Kanya Bhrun Hatya Essay in Hindi – हमारे समाज में चाहे पढ़े-लिखे लोगों में प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है फिर भी बहुत ही सामाजिक बुराइयां हैं जो आज भी हमारे समाज की जड़ों को भीतर से खोखला कर रही है। इनमें दहेज, बाल मजदूरी, अंधविश्वास, ऊंच-नीच, नशा और भ्रूण हत्या हैं

Kanya Bhrun Hatya

भ्रूण हत्या का शाब्दिक अर्थ है अजन्मे बच्चे की गर्भ में हत्या करना पहले पहले लड़के- लड़की में कोई फर्क नहीं किया जाता था, परंतु धीरे-धीरे मनुष्य ने लड़के को लड़की से ज्यादा अहमियत देनी शुरू कर दी और आज 1000 लड़कों की तुलना में सिर्फ 800 या इससे भी कम लड़कियां हमारी जुल्मी व्यवहार और संकीर्ण सोच की जीती जागती तस्वीर है।

पहली बार 1974 में सर्वेक्षण हुआ जैसे लड़कियों की कमी हुई संख्या की जानकारी पूरे समाज को भी तब से आज तक यह संख्या लगातार कम हो रही है। गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में उच्चारण किया के :

भ्रूण हत्या के जन्मदाता और इस में बढ़ोतरी के हम खुद ही जिम्मेदार हैं इसके कई कारण हैं, पहला हमारे समाज की वंश उतराअधिकारी की खवाहिश है, दूसरा लड़की को कमजोर समझना, तीसरा लड़कियों की शादी कर दूसरे घर जाना, चौथा अशिक्षित समाज की अशिक्षित सोच, अंधविश्वास, मर्द प्रधान समाज, झूठी शान गरीबी नई तकनीक भेदभाव कमजोर कानून शिक्षा का घिसा-पिटा क्षेत्र के सभी कारण है। जिन्होंने भ्रूण हत्या में अपना भरपूर योगदान दिया है एक सर्वेक्षण के अनुसार पिछले 20 वर्षों में अकेले भारत में 10 मिलियन भ्रूण हत्या हुई है। आज हमारी बेटियां ना सिर्फ शिक्षा बल्कि हर क्षेत्र में अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ रही है। मदर टेरेसा कल्पना चावला प्रतिभा पाटिल जैसी प्रतिभाएं बेटियों के प्रति सोच बदलने की पहल के लिए बड़ी उदाहरण है।

आइए भारत जैसे लोकतांत्रिक देश पर लगे भ्रूण हत्या जैसे घिनौने कलंक को मिटाने में अपना योगदान डालें, जहां हर रूप में देवी- देवता पूजे जाते हैं, रक्षाबंधन मनाया जाता है दिवाली पर लक्ष्मी पूजा होती है वहां पर ऐसे अपराध हमारी घटिया मानसिकता को दर्शाते हैं, आइए मिलकर पुरानी बूढी रूढ़िवादी सोच को बदलें और ऐसा समाज बनाए जा बेटियां के प्रति सकारात्मक नजरिया पढ़ सके आज कानून में धारा 318 सेक्शन में भ्रूण हत्या की शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। इतिहास गवाह है कि जब भी समाज में बदलाव आया है तो उसमें सबसे बड़ा हाथ सोच का रहा है, अपनी सोच बदले ताकि हमारी बेटियों को फिर से यह ना कहना पड़े के “अगले जन्म मुझे बिटिया ना कीजो”

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