Kanyadan Kavita ke rachaita kaun hai
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कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
इस कविता में उस दृश्य का वर्णन है जब एक माँ अपनी बेटी का कन्यादान कर रही है। बेटियाँ ब्याह के बाद पराई हो जाती हैं। जिस बेटी को कोई भी माता पिता बड़े जतन से पाल पोसकर बड़ी करते हैं, वह शादी के बाद दूसरे घर की सदस्य हो जाती है। इसके बाद बेटी अपने माँ बाप के लिए एक मेहमान बन जाती है। इसलिए लड़की के लिए कन्यादान शब्द का प्रयोग किया जाता है। जाहिर है कि जिस संतान को किसी माँ ने इतने जतन से पाल पोस कर बड़ा किया हो, उसे किसी अन्य को सौंपने में गहरी पीड़ा होती है। बच्चे को पालने में माँ को कहीं अधिक दर्द का सामना करना पड़ता है, इसलिए उसे दान करते वक्त लगता है कि वह अपनी आखिरी जमा पूँजी किसी और को सौंप रही हो।
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की
लड़की अभी सयानी नहीं हुई थी; इसका मतलब है कि हालाँकि वह बड़ी हो गई थी लेकिन उसमें अभी भी दुनियादारी की पूरी समझ नहीं थी। वह इतनी भोली थी कि खुशियाँ मनाने तो उसे आता था लेकिन यह नहीं पता था कि दुख का सामना कैसे किया जाए। उसके लिए बाहरी दुनिया किसी धुँधले तसवीर की तरह थी या फिर किसी गीत के टुकड़े की तरह थी। ऐसा अक्सर होता है कि जब तक कोई अपने माता पिता के घर को छोड़कर कहीं और नहीं रहना शुरु कर देता है तब तक उसका समुचित विकास नहीं हो पाता है।