Hindi, asked by irshaddued831, 11 months ago

Kanyakumari per Apna Anubhav in Hindi

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Answered by rahulthakur1722006
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मेरी दोनों बेटियों की बड़ी ललक थी दक्षिण-यात्रा की। संयोग बना और हम कन्याकुमारी की यात्रा पर निकल पड़े। हम लोग ग्वालियर स्टेशन पहुंचे और वहां से श्रीधाम एक्सप्रेस से दिल्ली गए। फिर इंदिरा गांधी हवाई अड्डे के टर्मिनल तीन से एयर इंडिया की फ्लाइट से तिरुवनंतपुरम के लिए उड़ान भरी। विंडो सीट्स मिल गई थीं। इसलिए जब तक सूर्यदेव प्रकाश बिखेरते रहे, बाह्य दृश्यों का जमकर आनन्द लिया। तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर हम लोग रात को 9.30 बजे पहुंचे। वहां भ्रमण के बाद हम अपने लक्ष्य कन्याकुमारी के लिए रवाना हुए। बस से नागरबेलि फिर बस बदलकर कन्याकुमारी। वहां हम बस स्टैंड से पैदल ही कन्याकुमारी मंदिर पहुंचे। देवी कन्याकुमारी का यह मंदिर अत्यंत भव्य है। कतार में लगकर हमने मां कन्याकुमारी के दर्शन किए। स्टीमर से पहुंचे स्मारक

दोपहर के भोजन के पश्चात हम लोग अपने गंतव्य स्थल-स्वामी विवेकानंद शिला स्मारक जाने के लिए पंक्ति में लग गए। यह स्मारक देवी कन्याकुमारी मंदिर के दक्षिण-पूर्व में सागर-संगम के बीच में है। कतार बहुत लंबी थी। कड़ी धूप से बचने के लिए लोग किनारे की दुकानों के अग्रभाग की थोड़ी थोड़ी छाया का आश्रय ले लेते थे।

कतार कुछ आगे बढ़ी तो हम लोग प्रबंधन द्वारा बनाए गए शेड्स में पहुंच गए। ये शेड्स कतारबद्ध यात्रियों को धूप और वर्षा से बचाने के लिए ही बनाए गए हैं। शेड्स में जगह-जगह सीमेंट की बैंच भी बनी हुई हैं। जिन पर बैठ कर यात्री श्रम-परिहार भी कर लेते हैं। कतार आगे बढ़ती है, समुद्र-तट आता है। सभी लोग टिकट खिड़की से टिकट लेते हैं फिर बिल्कुल समुद्र तट पर पहुंचते हैं। यहां से स्टीमर चलते हैं प्रायः जब एक इस पार होता है तो दूसरा शिला स्मारक तट पर। इन्हीं में बैठकर हम लोग गंतव्य पर पहुंंचे।

शिला की परिक्रमा

स्वामी विवेकानंद शिला को दो भागों में देखा जा सकता है। एक वह स्थान है जहां भगवती पार्वती ने कन्या के रूप में कैलाशपति शिव का वरण करने के लिए कठोर तपस्या की थी। शिला पर देवी का पदचिह्न बना हुआ है, इसलिए यह भाग श्रीपाद भी कहा जाता है। यात्री यहां परिक्रमा कर दर्शन लाभ लेते हैं। शिला का दूसरा स्थान वह है जहां मां दुर्गा के अनन्य भक्त स्वामी विवेकानंद ने ज्ञान-साधना की थी।

काले पत्थर की है प्रतिमा

मुख्य भूमि से दूर अंदर समुद्र में इस स्मारक का निर्माण 70 के दशक में किया गया। स्वामीजी की प्रतिमा काले पत्थर की बनी है। उनका मुख मुख्य भूमि की ओर है जिससे वह देश को कर्म और अध्यात्म का उपदेश देते-से जान पड़ते हैं। लगभग 4 एकड़ क्षेत्र में विस्तीर्ण आधार शिला पर स्मारक धौलपुरी पत्थरों से प्राचीन तमिल स्थापत्य शैलियों के विशेषज्ञों के संरक्षण में बनाया गया है। सच में इस शिला स्मारक पर स्वर्गीय आनंद का अनुभव होता है। तीन महासागरों का संगम

यहां तीन महासागरों-बंगाल की खाड़ी, हिन्द महासागर और अरब सागर का संगम है। इन तीन महासागरों की अथाह जलराशि, शिला से टकराती समुद्री लहरें मन मोह लेती हैं। इस शिला स्मारक से लगभग 50 मीटर की दूरी पर एक अन्य शिला पर काले पत्थर की एक विशालकाय मूर्ति स्थापित है, जो यह तमिल भाषा के महान कवि थिरुवल्लुवर की मूर्ति है। अपने अल्पकालीन प्रवास पर हम लोगों ने धर्म, अध्यात्म ज्ञान और प्रकृति के रहस्य को अपने चक्षुओं में समेटा और स्मृति संजोए हुए वापस घर लौट आए।

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