कर कानन कुंडल मोरपखा, उर पै बनमाल बिराजती है।
मुरली कर में अधरा मुस्कानी, तरंग महाछबि छाजती है।।
रसखानी लखै तन पीतपटा, सत दामिनी कि दुति लाजती है।
वह बाँसुरी की धुनी कानि परे, कुलकानी हियो तजि भाजती है।। anuvaad bta do pllz koi mere exam h
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Explanation:
प्रस्तुत पद्यांश में रसखान जी कहते हैं कि श्री कृष्ण जी ने हाथों में कंगन कानों में कुंडल और सिर पर मोर का पंख धारण किया हुआ है उनके हृदय पर वनों की माला सुशोभित होती है जो बहुत सुंदर प्रतीत होती है.
उनके हाथों में मुरली है और उनके होठों पर मंद मंद मुस्कान है. उनकी मुस्कान ऐसे प्रतीत होती है जैसे कोई तरंग की छवि हो. अर्थात उनकी मुस्कान सब तरफ मुस्कुराहट की तरंगे बिखेर देती है.
रसखान जी कहते हैं कि उनके शरीर पर पीले रंग के वस्त्र ऐसे सुशोभित हैं जिसे देखकर सैकड़ों बिजलियां भी शरमा जाती हैं.
रसखान जी कहते हैं कि उनकी बांसुरी की धुन कान में पड़ते ही गोपियां अपनी लोक लाज त्याग कर उनकी ओर भागी चली आती हैं. जब वे बांसुरी बजाते हैं तो उनके बांसुरी से इतनी मधुर आवाज निकलती है कि गोपियां अपनी सुध बुध भूल जाती हैं और अपनी लोक लाज त्याग कर उनकी ओर खिंची चली आती है.
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