कर्म ही पूजा है par anuched
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कार्य हमारी चेतना के विकास के लिए एक अन्य प्रक्रिया है। हर दिन सुबह से शाम तक तुम व्यस्त रहते हो, तुम कुछ न कुछ कार्य करते हो। कार्य करना अच्छी बात है, इससे तुम्हारा जीवन सुंदर बन सकता है - बशर्ते कि तुम समझ सको कि इसे कैसे करना है। अगर तुम जान जाओ कि काम कैसे करना है तो यह कार्य तुम्हारी चेतना के विकास की एक सुंदर प्रक्रिया होगी।
तुम इस रहस्य को अच्छी तरह समझ लो कि परमात्मा तक पहुंचने का एक रास्ता है- 'कर्म योग'। अर्थात् कार्य के द्वारा योग, मन, शरीर, प्राण और चैत्य की क्रियाओं से। काम करने की भी एक तकनीक है। तकनीक बिलकुल सही शब्द है - अगर तुम उसको ठीक से समझ सको। केवल कर्म के द्वारा ही तुम्हारा जीवन आश्चर्यजनक रूप से सुंदर बन जाएगा। याद रखो और अपने को समर्पित कर दो।
हमेशा अपनी पूरी तन्मयता, एकाग्रता से काम करो, उसमें अपना मन, तन और हृदय लगा दो। फल को महत्व मत दो। यही फॉर्मूला है : स्मरण करो, समर्पण करो और पूरी निष्ठा से कर्म करो। तुम्हारे हाथ में केवल यह एक चीज है, फल, परिणाम तुम्हारे हाथ में नहीं है। हर रोज, सुबह से शाम तक, जब तक तुम काम कर रहे हो उस दिव्य को याद रखो और उसे ही अर्पित करो।
अपने पूरे मन से ऐसा करो। श्री मां को याद करो और उन्हें कर्म अर्पित करो और इस तरह तुम्हारा काम ही तुम्हारी चेतना के विकास में सहायक बनेगा। और जब रात को तुम सोने जाओगे तो तुम्हें कोई समस्या नहीं होगी। हर काम चाहे वह कोई भी हो, अर्पण कर दो। बस इतना ही करना है। परमात्मा की दिव्य शक्ति सर्वत्र व्याप्त है। ..
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उत्तर⤵
मनुष्य तो भगवान की पूजा करता है यह तो ठीक है इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन क्या कुछ मनुष्य यह जानते हैं कि कर्म ही पूजा हैअब आप सोचेंगे कि कर्म ही पूजा कैसे हुआ तो ईश्वर ने स्वयं कहा है कि अगर आप कर्म अच्छे करते हो तो आपको भगवान की पूजा करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि अच्छे कर्म से बढ़कर कोई बड़ा पूजा नहीं होता हैI इस पूरे धरती पर सबसे बड़ा पूजा है अच्छे कर्म करना अगर आप अच्छे कर्म करते हो तो सबसे बड़ी पूजा करते हो आप दुनिया की इसलिए भगवान की पूजा करने की जरूरत नहीं है क्योंकि जिस समय आप अच्छे कर्म करते हो आपकी पूजा उसी समय होती है और जो लोग अच्छे कर्म नहीं करते हैं बुरे कर्म करते हैं अब वह पूजा भी करते हैं भगवान की पूजा भी करते हैं तो उसका कोई अर्थ नहीं हुआ उन्हें फल नहीं मिलेगा उन्हें फल मिलेगा बुरे फल क्योंकि उन्होंने कर्म पूरे किए तो फल भी बुरा मिलेगा वह दूसरों के साथ गलत करेंगे तो उनके साथ गलत होगा अब आप अच्छे कर्म करो और पूजा ना करो तो यह भी मंजूर है क्योंकि पूजा तो आप उसी वक्त करते हो जब आप अच्छे कर्म करते हो और अगर आप अच्छे कर्म नहीं करते और लेकिन भगवान की पूजा करते हो तो आपकी पूजा का कोई अर्थ नहीं आपकी पूजा बेकार है अच्छे कर्म करो और अच्छे फल पाऊंI