Hindi, asked by ritakumari58123, 11 months ago

'कर्म ही पूजा है' पर निबन्ध दें प्लीजज्ज


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Answered by rishavthakur27
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कर्म ही पूजा है

यह वाक्य कई जरूरी जगहों पर लिखा होता है । रेलवे स्टेशनों पर, आम दफ्तरों में लिखा होता है । कर्म करना इन्सान का पहला धर्म है ।

कई लोग कर्म को भाग्य रेखा मानते हैं । वो कर्म दूसरा है । यह कर्म गीता वाला कर्म है । गीता में लिखा है - " कर्म ही श्रेष्ठ है, कर्म कर फल की इच्छा मत कर " ।

कबीर ने अपनी वाणी में कर्म योग पर ही अपना तर्क दिया है । जो आदमी स्टेशन की ओर चल देता है उसको तो गाड़ी मिल सकती है ।

जो चला ही नहीं उसको तो मिल ही नहीं सकती । आर्यसमाज का भी यही नियम है ।

कर्म करना इन्सान का पहला लक्ष्य होना चाहिए । तकरीबन सब धर्म-कर्म की व्याख्या करते हैं ।

अपना-अपना ढंग है । आज तो विज्ञान का युग है । करने को ही कर्म कहते हैं ।

कहीं पर दुनिया में ऐसा नहीं लिखा है कि भाग्य के भरोसे रहो ।

कर्म करने से बड़ा आनंद मिलता है । दिशा सही हो तो और भी आनंद आता है ।

कर्म करने का तरीका भी होता है । कर्म करने से पहले ज्ञान का होना जरूरी है । फिर उसको मानना जरूरी होता है । फिर करना जरूरी होता है ।

कर्म तो सभी करते हैं । कर्म अगर ज्ञान को जानकर किया जाय तो बहुत तरक्की होती है ।

कई लोग कर्म तो करते हैं, मगर कभी-कभी दिशा हीन हो जाते हैं । उनका कर्म ज्यादा सफल नहीं होता । पक्के इरादे से किया कर्म ही ज्यादा

कारगर होता है । कई लोगों की शिकायत रहती है कि हम कर्म तो करते हैं मगर कामयाबी नहीं मिलती । उनकी दिशा में कोई खराबी जरूर होगी । सब को अच्छा गुरु मिलना आसान काम नहीं है । सुखी रहने के लिए अच्छे गुरु की तलाश जरूरी है । ऐसा ही नियम है । अच्छा साहित्य भी काम आता है ।

Answered by AnitaShyara
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उत्तर⤵

मनुष्य तो भगवान की पूजा करता है यह तो ठीक है इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन क्या कुछ मनुष्य यह जानते हैं कि "कर्म ही पूजा है" अब आप सोचेंगे कि कर्म ही पूजा कैसे हुआ? तो ईश्वर ने स्वयं कहा है कि अगर आप कर्म अच्छे करते हो तो आपको भगवान की पूजा करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि अच्छे कर्म से बढ़कर कोई बड़ा पूजा नहीं होता हैI इस पूरे धरती पर सबसे बड़ा पूजा है अच्छे कर्म करना अगर आप अच्छे कर्म करते हो तो सबसे बड़ी पूजा करते होI इसलिए भगवान की पूजा करने की जरूरत नहीं है क्योंकि जिस समय आप अच्छे कर्म करते हो आपकी पूजा उसी समय होती है और जो लोग अच्छे कर्म नहीं करते हैं बुरे कर्म करते हैं अब वह पूजा भी करते हैं भगवान की पूजा भी करते हैंI तो उसका कोई अर्थ नहीं हुआ उन्हें फल नहीं मिलेगा उन्हें फल मिलेगा बुरे फल भी बुरा मिलेगाI वह दूसरों के साथ गलत करेंगे तो उनके साथ गलत होगाI अब आप अच्छे कर्म करो और पूजा ना करो तो यह भी मंजूर है क्योंकि पूजा तो आप उसी वक्त करते हो जब आप अच्छे कर्म करते हो और अगर आप अच्छे कर्म नहीं करते और लेकिन भगवान की पूजा करते हो तो आपकी पूजा का कोई अर्थ नहीं आपकी पूजा बेकार है अच्छे कर्म करो और अच्छे फल पाऊंI

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