कर्म के आधार पर क्रिया के कितने भेद होते हैं प्रत्येक के एक एक उदाहरण दीजिए
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कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं। (1) अकर्मक क्रिया-जिन क्रियाओं का फल सीधा कर्ता पर ही पड़े वे अकर्मक क्रिया कहलाती हैं । ... (2) सकर्मक क्रिया-जिन क्रियाओं का फल (कर्ता को छोड़कर) कर्म पर पड़ता है वे सकर्मक क्रिया कहलाती हैं। इन क्रियाओं में कर्म का होना आवश्यक हैं ।
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मूल रूप से कर्म के आधार पर क्रिया दो प्रकार की बताई गई है।
सकर्मक क्रिया और अकर्मक क्रिया।
- सकर्मक क्रिया :- वह क्रिया जिन क्रियाओं का फल (कर्ता को छोड़कर) कर्म पर पड़ता है वह सकर्मक क्रिया कहलाता है ।इन क्रियाओं में कर्म का होना आवश्यक होता है वही सकर्मक क्रिया के लाता है।
- सकर्मक का शाब्दिक अर्थ होता है। कर्म के साथ। अर्थात जिस में कर्म का होना निश्चित होता है सकर्मक होता है।
- अकर्मक क्रिया :- अकर्मक क्रिया वह क्रिया होती है जिन क्रियाओं का फल सीधा कर्ता पर ही पड़े वह अकर्मक क्रिया कहलाते हैं ।अकर्मक क्रिया में कर्म की प्रधानता नहीं होती है।
उदाहरण
- सकर्मक क्रिया :- जिन क्रिया में कर्म के होने की अपेक्षा होती है। उदाहरण पहला सीता ने सेव खाया।
- दूसरा मोहित ने पानी पिया।
- अकर्मक क्रिया के साथ कर्म प्रयुक्त नहीं होता है वह क्रियाएं जिनका प्रभात कर्म पर ना पढ़कर वाक्य में प्रयुक्त करता पर पड़ता हो।
- जैसे :- पहला रोहन दौड़ रहा है l वाक्य में कर्म कारक उपस्थित ही नहीं है।
- दूसरा है शीतल हंस रही है। इनमें किसी भी प्रकार का क्रम दिखाई नहीं देता इसलिए यह अकर्मक क्रिया के उदाहरण हैं।
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