Hindi, asked by shahilkumar005, 1 month ago

कर्म के मार्ग पर आनंदपूर्वक चलता हुआ उत्साही मनुष्य यदि अंतिम फल तक न पहुँचे तो भी उसकी दशा कर्म न करने वाले की अपेक्षा
अधिकतर अवस्थाओं में अच्छी रहेगी, क्योंकि एक तो कर्मकाल में उसका जो भी जीवन बीता वह संतोष या आनंद में बीता, उसके उपरांत
फल की प्राप्ति पर भी उसे यह पछतावा न होगा कि मैंने प्रयत्न ही नहीं किया। बुद्धि द्वारा पूर्ण रूप से निश्चित की हुई व्यापार परम्पया
का नाम ही प्रयत्न है। प्रयल की अवस्था में मनुष्य का जीवन जितना संतोष, आशा और उत्साह में बोसला है. अप्रयत्न की दशा मेंटलमा
ही शोक और दु:ख में करता है। कर्म मैं आनंद अनुभव करने वालों का नाम कर्मयय है। धर्म और उदारता के उन कर्यो के विधान में ही
एक ऐसा दिव्य आनंद भय रहता है कि कर्ता को वे कानं ही फल सरकाप लगने । अयाचार और करने का ट्रम्प कालीकोकी
कर्मवीर को सच्चे सुख की प्राप्ति होती है। कर्मवीर के लिए सुख फलप्राशि मक कामा नहीं रहता प्रतिक उसी समय से बाड़ा-थोड़ा करत
मिलने लगता है. जबसे वह कर्म की और हाथ बढ़ाता है।​

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Answered by ashabhardwaj1985
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