कर्मा में आनंद अनुभव करने वालों का ही नाम कर्मण्य है धर्म और उदारता के उच्च कर्मों के विधान में ही ऐसा दिव्य आनंद भरा रहता है कि करता को लेकर नहीं फल स्वरुप लगते हैं धर्म और उदारता के उच्च कर्मों के विधान में ही ऐसा दिव्य आनंद भरा रहता है कि करता को वह कर्म ही फल स्वरुप लगते हैं
इसका संदर्भ प्रसंग व्याख्या बताइए
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