Hindi, asked by Jaheerbasha9886, 10 months ago

कर्मनाशा की हार' अथवा 'बहादुर' कहानी का कथानक संक्षेप में लिखिए।

Answers

Answered by birendrapratap738
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Answer:

कर्मनाशा की हार

Explanation:

काले सांप का काटा आदमी बच सकता है, हलाहल ज़हर पीने वाले की मौत रुक सकती है, किंतु जिस पौधे को एक बार कर्मनाशा का पानी छू ले, वह फिर हरा नहीं हो सकता. कर्मनाशा के बारे में किनारे के लोगों में एक और विश्वास प्रचलित था कि यदि एक बार नदी बढ़ आये तो बिना मानुस की बलि लिये लौटती नहीं. हालांकि थोड़ी ऊंचाई पर बसे हुए नयी डीह वालों को इसका कोई खौफ न था; इसी से वे बाढ़ के दिनों में, गेरू की तरह फैले हुए अपार जल को देखकर खुशियां मनाते, दो-चार दिन की यह बाढ़ उनके लिए तब्दीली बनकर आती, मुखियाजी के द्वार पर लोग-बाग इकट्ठे होते और कजली-सावन की ताल पर ढोलकें उनकने लगतीं. गांव के दुधमुंहे तक ‘ई बाढ़ी नदिया जिया ले के माने’ का गीत गाते; क्योंकि बाढ़ उनके किसी आदमी का जिया नहीं लेती थी. किंतु पिछले साल अचानक जब नदी का पानी समुद्र के ज्वार की तरह उमड़ता हुआ, नयी डीह से जा टकराया, तो ढोलकें बह चलीं, गीत की कड़ियां मुरझाकर होंठों पे पपड़ी की तरह छा गयीं, सोखा ने जान के बदले जान देकर पूजा की, पांच बकरों की दौरी भेंट हुई, किंतु बढ़ी नदी का हौसला कम न हुआ. एक अंधी लड़की, एक अपाहिज बुढ़िया बाढ़ की भेंट रहीं. नयी डीह वाले कर्मनाशा के इस उग्र रूप से कांप उठे, बूढ़ी औरतों ने कुछ सुराग मिलाया. पूजा-पाठ कराकर लोगों ने पाप-शांति की.

एक बाढ़ बीती, बरस बीता. पिछले घाव सूखे न थे कि भादों के दिनों में फिर पानी उमड़ा. बादलों की छांव में सोया गांव भोर की किरण देखकर उठा तो सारा सिचान रक्त की तरह लाल पानी से घिरा था. नयी डीह के वातावरण में हौलदिली छा गयी. गांव ऊंचे अरार पर बसा था, जिस पर नदी की धारा अनवरत टक्कर मार रही थी, बड़े-बड़े पेड़ जड़-मूल के साथ उलटकर नदी के पेट में समा रहे थे, यह बाढ़ न थी, प्रलय का संदेश था, नयी डीह के लोग चूहेदानी में फंसे चूहे की तरह भय से दौड़-धूप कर रहे थे, सबके चेहरे पर मुर्दनी छा गयी थी.

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