कर्मवीर कविता का भावार्थ 10STD हिंदी(संयुक्त) क्रमांक 8
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‘कर्मवीर’ कविता हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित की गई है। इस कविता के माध्यम से कवि ने परिश्रमी तथा कर्मवीर लोगों लोगों की प्रशंसा करते हुए उनकी महिमा का बखान किया है।
भावार्थ —
कवि हरिऔध जी कहते हैं कि जो लोग कर्मवीर होते हैं, वे किसी भी मुसीबत से नहीं घबराते। वो भाग्य के भरोसे नहीं बैठे रहते बल्कि अपना पुरुषार्थ दिखाते हुए कठिन से कठिन कार्य को करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। उनके सामने कोई भी कठिन कार्य कठिन नहीं रह जाता। ऐसे लोग अपनी क्षमता का व्यर्थ में दिखावा भी नहीं करते हैं। वह अपनी अपने लगन और परिश्रम से अपनी सारी समस्याओं को दूर करने की क्षमता रखते हैं।
कवि हरिऔध जी कहते हैं कि ऐसे लोग किसी भी कार्य को कल के लिए नहीं छोड़ते। एक बार जो वह मन में ठान लेते हैं तो उसे शीघ्र से शीघ्र पूरा करने के बारे में सोचते। ऐसे लोगों में अहंकार नहीं होता है और वह सब की सलाह लेकर और सबको साथ लेकर चलने वाले लोग होते हैं।
कवि हरिऔध जी कहते हैं ऐसे लोग अपने समय का मूल्य समझते हैं और अपने समय को व्यर्थ की बातों में नहीं गवांते। वह हालतों से जरा भी नहीं डरते और परिश्रम करने से जी नहीं चुराते। ऐसे लोग अपने कठोर परिश्रम का उदाहरण दूसरे लोगों के सामने प्रस्तुत करते हैं।
कवि हरिऔध जी कहते हैं कि आकाश छूता ऊँचा पर्वत शिखर क्यों ना हो, या घने अंधेरे जंगल क्यों न हों, या उफनती लहरें क्यों ना हो या भयंकर अग्नि की ज्वाला ही क्यों ना हो। कोई भी वाधा ऐसे कर्मवीर कर्मठ लोगों के राह में अड़चन नहीं पैदा कर पाती। ऐसे लोग अपनी राह में कैसी भी रुकावट आए वह उसे पार करके अपनी मंजिल तक पहुंच कर ही दम लेते हैं।
इस प्रकार कवि हरिऔध जी ने अपनी कविता के माध्यम से कर्मवीर कर्मठ लोगों के गुणों का बखान करते हुए उनका महिमामंडन किया है।
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शेष पंक्तियों का भावार्थ-
चिलचिलाती धूप----------------वे उज्जवल रतन ।