Social Sciences, asked by vikramarajbhar5, 4 months ago

कर्नाटका, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल की एक एक प्रांतीय दल का पता कीजिए एवं लिखिए​

Answers

Answered by abhayjii210
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Answer:

भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का वजूद हमेशा ही रहा है- आजादी से पहले राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में भी और आजादी के बाद भी लंबे समय तक. लेकिन उनकी भूमिका सिर्फ उनसे संबंधित राज्यों तक ही सीमित रही.

यह स्थिति लगभग 1980 के दशक की शुरुआत से तब तक बनी रही जब तक कि राष्ट्रीय आंदोलन की कोख से जन्मी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तमाम तरह की क्षेत्रीय आकांक्षाओं, अस्मिताओं और संवेदनाओं से अपने को जोड़े रही और उनका पर्याप्त आदर करती रही. लेकिन 1980 के दशक के मध्य तक तेलुगू देशम पार्टी और असम गण परिषद जैसे नए क्षेत्रीय दलों का धमाकेदार उदय हुआ. उसी दशक के खत्म होते-होते देश में गठबंधन राजनीति का दौर शुरू हो गया और उसी के साथ शुरू हुआ राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का दखल और दबदबा.

1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की अगुवाई में वामपंथी दलों और भारतीय जनता पार्टी के बाहरी समर्थन से बनी राष्ट्रीय मोर्चा सरकार से लेकर मई 2014 तक डॉ. मनमोहन सिंह की अगुवाई में चली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार तक लगभग हर सरकार में क्षेत्रीय दलों की अहमियत बनी रही.

लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने जिस तरह अपनी जीत का डंका बजाया था और फिर राज्यों के विधानसभा चुनावों में उसने अपनी जीत का सिलसिला शुरू किया, उससे कई राजनीतिक विश्लेषकों ने यह मान लिया था कि अब देश की राजनीति में क्षेत्रीय दलों के दिन लद गए हैं.

उनकी इस धारणा को 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भी और ज़्यादा पुष्ट किया. लेकिन उस आम चुनाव के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और पिछले महीने दिसंबर में झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उस धारणा का खंडन करते हुए साबित किया कि क्षेत्रीय दलों का वजूद अभी ख़त्म नहीं हुआ है और वे राष्ट्रीय राजनीति में अपना दखल बनाए रखते हुए राष्ट्रीय दलों की मजबूरी बने रहेंगे.

Answered by viramrajbhar22
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