कर नियोजन कर बचाने का एक वैज्ञानिक और नैतिक तरीका है इस कथन को समझाइये एवं इसके महत्व और सीमाओं की व्याख्या कीजिये
Answers
किसी राज्य द्वारा व्यक्तियों या विविध संस्था से जो अधिभार या धन लिया जाता है उसे कर या टैक्स कहते हैं। राष्ट्र के अधीन आने वाली विविध संस्थाएँ भी तरह-तरह के कर लगातीं हैं। कर प्राय: धन (money) के रूप में लगाया जाता है किन्तु यह धन के तुल्य श्रम के रूप में भी लगाया जा सकता है। कर दो तरह के हो सकते हैं - प्रत्यक्ष कर (direct tax) या अप्रत्यक्ष कर (indirect tax)। एक तरफ इसे जनता पर बोझ के रूप में देखा जा सकता है वहीं इसे सरकार को चलाने के लिये आधारभूत आवश्यकता के रूप में भी समझा जा सकता है
आधुनिक सरकारों के लिए कराधान (taxation), आय का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। लोकतंत्र में कराधान ही सरकार की राजनीतिक गतिविधियों को स्वरूप प्रदान करता है। कर करदाता द्वारा किया जाने वाला ऐसा अनिवार्य अंशदान है जो कि सामाजिक उद्देश्य जैसे आय व संपत्ति की असमानता को कम करके उच्च रोजगार स्तर प्राप्त करने तथा आर्थिक स्थिरता व वृद्धि प्राप्त करने में सहायक होता है। कर एक ऐसा भुगतान है जो आवश्यक रुप से सरकार को उसके बनाए गए कानूनों के अनुसार दिया जाता है। इसके बदले में किसी सेवा प्राप्ति की आशा नहीं की जा सकती है।
Explanation:
नियोजन का महत्व
व्यावसायिक क्षेत्र में अनेक परिवर्तन आते रहते है जो उपक्रम के लिए विकास एवं प्रगति का मार्ग ही नहीं खोलते हैं, वरन् अनेक जोखिमों एवं अनिश्चितताओं को भी उत्पन्न कर देते हैं। प्रतिस्पर्द्धा, प्रौद्योगिकी, सरकारी नीति, आर्थिक क्रियाओं, श्रम पूर्ति, कच्चा माल तथा सामाजिक मूल्यों एवं मान्यताओं में होने वाले परिवर्तनों के कारण आधुनिक व्यवसाय का स्वरूप अत्यन्त जटिल हो गया है। ऐसे परिवर्तनशील वातावरण में नियोजन के आधार पर ही व्यावसायिक सफलता की आशा की जा सकती हैं। आज के युग में नियोजन का विकास प्रत्येक उपक्रम की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। व्यावसायिक बर्बादी, दुरूपयोग व, जोखिमों को नियोजन के द्वारा ही कम किया जा सकता है। नियोजन की आवश्यकता एवं महत्व को निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है :
1. अनिश्चितताओं में कमी : भविष्य अनिश्चितताओं तथा परिवर्तनों से भरा होने के कारण नियोजन अधिक आवश्यक हो जाता है। नियोजन के माध्यम से अनिश्चितताओं को बिल्कुल समाप्त तो नहीं अपितु कम अवश्य किया जा सकता है। पूर्वानुमान जो नियोजन का आधार है, की सहायता से एक प्रबन्धक भविष्य का बहुत कुछ सीमा तक ज्ञान प्राप्त करने तथा भावी परिस्थितियों को अपने अनुसार मोड़ने में समर्थ हो सकता है।
2. नियन्त्रण में सुगमता : कार्य पूर्व-निर्धारित कार्य-विधि के अनुसार हो रहा हे या नहीं, यह जानना ही नियन्त्रण का कार्य है। नियोजन के माध्यम से कार्य प्रारम्भ करने की विधि तय की जाती है ताकि प्रमाप निर्धारित किये जाते है। ऐसी कई तकनीकों का विकास हो चुका है, जिनसे नियोजन एवं नियन्त्रण में गहरा सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। जो तकनीक नियोजन में काम में ली जाती हैं वे ही आगे चलकर नियन्त्रण का आधार बनती हैं।
3. समन्वय में सहायता : समन्वय सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न क्रियाओं की एक व्यवस्थित प्रथा है। इसके माध्यम से उपक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त करना सरल हो जाता है, क्योंकि योजनाएं चुने हुए मार्ग हैं, इसलिए इनकी सहायता से प्रबन्धक संघर्ष के स्थान पर सहयोग जागृत कर सकता है जो कि विभिन्न क्रियाओं में समन्वय स्थापित करने में मदद देता है। इसके अतिरिक्त यह विभिन्न क्रियाओं का इस प्रकार निर्धारण करता है, जिससे समन्वय लाना आवश्यक बन जाता है।
4. उतावले निर्णयों पर रोक : नियोजन के अन्तर्गत सभी कार्य काफी सोच-विचार के पश्चात् ही हाथ में लिये जाते हैं, इसलिए उतावले निर्णयों से होने वाली हानि से बचा जा सकेगा।
5. पूर्णता का ज्ञान : उपक्रम को पूर्णता में देखने के कारण एक प्रबन्धक प्रत्येक क्रिया के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान कर पाता है ताकि जिस आधार पर उसके कार्य का निर्धारण किया गया है उसे जानने का अवसर भी उसे नियोजन के माध्यम से मिल पाता है।
6. अपवाद द्वारा प्रबन्ध : अपवाद द्वारा प्रबन्ध से अर्थ यह है, कि प्रबन्धक को प्रत्येक क्रिया में सम्मिलित नहीं होना चाहिए। यदि सब काम ठीक-ठाक चल रहा हो तो प्रबन्धक को निश्चिन्त रहना चाहिए और केवल उसी समय बीच में आना चाहिए जब कार्य नियोजन के अनुसार न चल रहा हो। नियोजन द्वारा संस्था के उद्देश्य निर्धारित कर दिए जाते हैं और सभी प्रयास उनको प्राप्त करने के लिए ही किए जाते हैं।
7. कर्मचारियों के सहयोग एवं संतोष में वृद्धि : नियोजन द्वारा विभिन्न कर्मचारियों को इस बात की जानकारी हो जाती है कि विभिन्न कर्मचारियों को कब, क्या और कै से करना है ? अपनी भावी क्रियाओं की पूर्व जानकारी हो जाने पर व मानसिक रूप से तैयार हो जाते है और जैसे ही कार्य का समय आता है, वे उसे अधिक लगन व मेहनत के साथ करते है। मेहनत से किये कार्यों से साख बढती है और संस्थान को लाभ प्राप्त होता है। इससे कर्मचारियों को संतुष्टि प्राप्त होती है तथा आपसी सहयोग को बढावा मिलता है।
8. निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति करना : नियोजन का अन्तिम एवं सबसे अधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयत्न करते रहना है।
9. विशिष्ट दिशा प्रदान करना : नियोजन द्वारा किसी कार्य विशेष की भावी रूपरेखा बनाकर उसे एक विशेष दिशा प्रदान करने का प्रयत्न किया जाता है, जो कि इसके अभाव में लगभग असम्भव प्रतीत होती है।
10. कार्यकुशलता मापदण्ड : नियोजन का उद्देश्य प्रबन्धकीय कुशलता एवं व्यक्तिगत व सामूहिक कार्यकुशलता के मूल्यांकन हेतु मापदण्ड निर्धारित करना।