करुणा बीमारी की वजह से विश्व एवं भारत की स्थिति पर अनुच्छेद
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कोरोना वायरस के भारत में पहुंचने से पहले ही देश की अर्थव्यवस्था की हालत चिंताजनक थी.
कभी दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था की विकास दर बीते साल 4.7 फ़ीसदी रही. यह छह सालों में विकास दर का सबसे निचला स्तर था.
साल 2019 में भारत में बेरोज़गारी 45 सालों के सबसे अधिकतम स्तर पर थी और पिछले साल के अंत में देश के आठ प्रमुख क्षेत्रों से औद्योगिक उत्पादन 5.2 फ़ीसदी तक गिर गया. यह बीते 14 वर्षों में सबसे खराब स्थिति थी. कम शब्दों में कहें तो भारत की आर्थिक स्थिति पहले से ही ख़राब हालत में थी.
विशेषज्ञों का मानना है कि अब कोरोना वायरस के प्रभाव की वजह से जहां एक ओर लोगों के स्वास्थ्य पर संकट छाया है तो दूसरी ओर पहले से कमज़ोर अर्थव्यवस्था को और बड़ा झटका मिल सकता है.
नरेंद्र मोदी
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सरकार के प्रयासों का रियलिटी चेक
भारत में असंगठित क्षेत्र देश की करीब 94 फ़ीसदी आबादी को रोज़गार देता है और अर्थव्यवस्था में इसका योगदान 45 फ़ीसदी है. लॉकडाउन की वजह से असंगठित क्षेत्र पर बुरी मार पड़ी है क्योंकि रातोंरात हज़ारों लोगों का रोज़गार छिन गया. इसीलिए सरकार की ओर से जो पहले राहत पैकेज की घोषणा की गई वो ग़रीबों पर आर्थिक बोझ कम करने के उद्देश्य से हुई.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1.70 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की जिससे भारत के गरीब 80 करोड़ लोगों को आर्थिक बोझ से राहत मिलेगी और उनकी रोज़ीरोटी चल सके. खातों में पैसे डालकर और खाद्य सुरक्षा का बंदोबस्त करके सरकार गरीबों, दैनिक मज़दूरी करने वालों, किसानों और मूलभूत सुविधाओं से वंचित लोगों की मदद कर रही है.
विशेषज्ञ सरकार के इन प्रयासों की सराहना कर रहे