कर्ण के बारे में दस वाक्य
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कर्ण (साहित्य-काल) महाभारत (महाकाव्य) के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक है। कर्ण का जीवन अंतत विचार जनक है। कर्ण महाभारत के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारियों में से एक थे। कर्ण एक सुत वर्ण से थे और भगवान परशुराम ने स्वयं कर्ण की श्रेष्ठता को स्वीकार किया था । कर्ण की वास्तविक माँ कुन्ती थी परन्तु उनका पालन पोषण करने वाली माँ का नाम राधे था। कर्ण के वास्तविक पिता भगवान सुर्य थे। कर्ण का जन्म पाण्डु और कुन्ती के विवाह के पहले हुआ था। कर्ण दुर्योधन का सबसे अच्छा मित्र था और महाभारत के युद्ध में वह अपने भाइयों के विरुद्ध लड़ा। कर्ण को एक आदर्श दानवीर माना जाता है क्योंकि कर्ण ने कभी भी किसी माँगने वाले को दान में कुछ भी देने से कभी भी मना नहीं किया भले ही इसके परिणामस्वरूप उसके अपने ही प्राण संकट में क्यों न पड़ गए हों। इसी से जुड़ा एक वाक्या महाभारत में है जब अर्जुन के पिता भगवान इन्द्र ने कर्ण से उसके कुंडल और दिव्य कवच मांगे और कर्ण ने दे दिये।
(१) कर्ण वेद व्यास द्वारा रचित महाकाव्य महाभारत का एक अहम योद्धा था।
(२) वह महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ा।
(३) वह सूर्य देवता से कुंती को मंत्र शक्ति के द्वारा प्राप्त ज्येष्ठ पुत्र था किंतु विवाह से पूर्व जन्म लेने के कारण सामाजिक आलोचना से बचने हेतु कुंती ने कर्ण को गंगा में बहा दिया।
(४) कर्ण का पालन पोषण भीष्म पितामह के सारथी अधिरथ सुशीर्ण और राधा ने किया जिस कारण कर्ण को राधेय के नाम से भी जाना जाता है।
(५) कर्ण भगवान परशुराम का शिष्य था।
(६) कर्ण के पास भगवान परशुराम के दिए हुए दिव्य कवच और कुंडल थे।
(७) कर्ण महाभारत में अपनी मित्रता के लिए प्रसिद्ध है। उसने प्राण रहते दुर्योधन से अपनी घनिष्ठ मित्रता का अद्वितीय प्रमाण प्रस्तुत किया।
(८) कर्ण अपनी दान वीरता के लिए प्रसिद्ध है, उसकी दान वीरता को इस प्रकार समझा जा सकता है कि युद्ध के दौरान यह जानते हुए कि षड्यंत्र करके उसके कवच और कुंडल छीने जा रहे हैं उस समय भी उसने अपनी दान वीरता को नहीं त्यागा।
(९) कर्ण ने युद्ध के अंतिम समय में कुंती के द्वारा यह जानने के बाद कि वह पांडवों का ज्येष्ठ भ्राता है उसने कुंती को पांच पांडवों के जीवित रहने का वादा निभाकर अंत तक पुत्र धर्म का भी पालन किया।
(१०) यद्यपि कर्ण महाभारत के युद्ध में अधर्म की ओर से लड़ा किंतु उसका व्यक्तित्व धर्म का प्रतीक है।