करुणा का बहुवचन क्या होगा
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सत्य अपने लिए रखना, प्रेम दूसरे के लिए और करुणा सबके लिए; यही जीवन का व्याकरण है, इसी को साधना है
हमारे उपनिषदों ने सौ शरद तक जीने का आशीर्वाद दिया है। ये ऋषि-मुनियों की उदारता है। सौ साल तक कोई-कोई ही पहुंचता है। लेकिन, जिजीविषा तो बनी रहती है कि हम सौ साल जीएं। लेकिन, जिजीविषा एक तप है। हम जीवनधर्मी हैं। ‘वयं अमृतस्य पुत्राः।’ जीवन के बारे में दुनिया में कई दृष्टिकोण हैं। बुद्धदर्शन कहता है, जीवन दुःख है। ये तथागत भगवान का निर्णय है।
पूरा पाश्चात्य जगत कहता है कि सुख प्राप्त करो, सुख भोगो। हमारे यहां नास्तिकवाद आया, उसमें कहा, ‘ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्।’ कर्जा करो लेकिन घी पियो। लेकिन, जरा सोचना जरूर। सुख अच्छा है, लेकिन सुख मिलता है साधन से और सुख मिलता है अनुकूल संबंध से। हम साधनों में सुख तलाशते हैं। सुविधा से इनकार नहीं है।
लेकिन याद रखना, सुख सुविधा पर आधारित है, सुविधा मिलती है नई-नई खोज से। आज विज्ञान ने क्या-क्या खोज दिया है। कान में ठीक से सुनाई न देता हो तो मशीन लगा देते हैं। विज्ञान ने जो खोज की है इससे आदमी सुखी होता है। नए-नए सुख अर्जित होते जा रहे हैं। स्वागत है।
कुल मिलाकर सुख सुविधा पर आधारित हो गया। लेकिन, संबंधों की अनुकूलता न हो तो हर सुविधा तुम्हें दुःखी कर सकती है। यह संबंध की अनुकूलता है? कई बार पास में बैठे व्यक्ति को भी लोग पसंद नहीं करते और एक कहींं दूर होता है तो भी अपनी आंखों से आंसू आ जाते हैं कि कब मिलेंगे उससे! क्योंकि संबंध की अनुकूलता है। आज परिवारों में संबंधों को क्या हो गया? अनुकूलता नहीं बची है। सुविधा तो बहुत है। अनुकूलता नहीं है। भाई-भाई के संबंध में अनुकूलता नहीं रही।
भगवान शंकराचार्य का जीवन के प्रति जो दृष्टिकोण है वो मिथ्या का है, ‘जगन्मिथ्या।’ मेरे शंकर कहते हैं, ‘सत हरि भजनु जगत सब सपना’ जगत के प्रति उसका दृष्टिकोण है स्वप्न। ये स्वप्न है। लेकिन जीवन के बारे में राम का दृष्टिबिंदु क्या है?
बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सद् ग्रंन्थन्हि नहीं गावा।।
कबहुँक करि करुना नर देही। देत राम बिनु हेतु सनेही।।
‘मानस’ का दृष्टि बिंदु है कि बहुत पुण्य के बाद ये शरीर मिला है। ये साधन का धाम है शरीर। जियो, हरि भजो, परमार्थ करो, जितनी मात्रा में जिया जाए सत्य, प्रेम, करुणा के साथ संलग्न रहो और द्वेष, ईर्ष्या और निंदा से दूरी रखो। जीवन जीने जैसा है और जीने के बाद भी जिजीविषा मत रखो। हरि जब बुला ले, मैं तैयार हूं, ऐसा करना है। तो ही आदमी जी पायेगा।
मैं जीवनधर्मी हूं, मरणधर्मी नहीं। छान्दोग्य उपनिषद में लिखा है, ‘नाल्पे सुखमस्ति’, हमें पूरा का पूरा चाहिए। कबीर कहते हैं, ‘कहै कबीर मैं पूरा पाया।’ कुछ शास्त्र जीवन को सुख और दुःख का मिश्रण समझते हैं। मेरा तो इतना ही मानना है, जितनी मात्रा में सत्य के करीब रहेंगे, निर्भयता से जीवन जी पाएंगे। जितनी मात्रा में प्रेम के करीब रहेंगे, जीवन में त्याग और बलिदान तुम्हारा स्वभाव हो जाएगा।
और जितनी मात्रा में करुणा के करीब जीएंगे, वृत्तियां हिंसा से मुक्त हो जाएंगी। आदमी जब बच्चा होता है, छोटा होता है, तब उसमें सत्य की प्रधानता होती है। बालक असत्य नहीं कहते। बचपन सबका सत्य है। फिर युवा होने पर प्रेम और बुढ़ापे में करुणा होती है।
जीवन की प्रस्थानत्रयी (श्रीमद्भगवद्गीता, ब्रह्मसूत्र और उपनिषदों का सामूहिक रूप) है- सत्य, प्रेम और करुणा। सत्य शंकर की दायीं, प्रेम बीच वाली और करुणा बायीं आंख है। त्रिलोचन शिव सत्य, प्रेम व करुणा की दृष्टि रखते हैं। दायीं आंख शंकर की सूर्य है। सूरज सत्य है। प्रेम शंकर की अग्नि आंख है। प्रेम अग्नि है। और मेरी व्यासपीठ प्रेम को मध्य में रखती है।
कभी-कभी ये आंख खुलती है। बाकी तो खोल ही नहीं पाते हम। नफरतों में जी रहे हैं। मैं करुणा को बायीं आंख क्यों कहता हूं? करुणा को बायें-दायें का भेद ही नहीं रहता। कौन उल्टा, कौन सीधा, कौन अपना, कौन पराया? करुणा, करुणा है। तो जीने की ये प्रस्थानत्रयी हैं। सत्य अपने लिए रखना। दूसरा सत्य बोलता है कि नहीं उसका हिसाब-किताब मत रखो। प्रेम दूसरे के लिए, जिसके साथ हो उसके लिए। और करुणा सबके लिए। मेरी दृष्टि में सत्य है एकवचन, प्रेम द्विवचन और करुणा बहुवचन है। यही जीवन का व्याकरण है। संकट के समय में हमें जीवन की इसी व्याकरण को साधना है।
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Answer:
Answer 1) (English)
The noun compassion can be countable or uncountable. In more general, commonly used, contexts, the plural form will also be compassion. However, in more specific contexts, the plural form can also be compassions e.g. in reference to various types of compassions or a collection of compassions.
Answer 2) (Hindi)
संज्ञा अनुकंपा गणना योग्य या बेशुमार हो सकती है। अधिक सामान्य, आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले संदर्भों में, बहुवचन रूप भी करुणा होगा। हालांकि, अधिक विशिष्ट संदर्भों में, बहुवचन रूप भी करुणा उदा सकता है। विभिन्न प्रकार की अनुकंपाओं या अनुकंपाओं के संग्रह के संदर्भ में।
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