कर्ण के कवच कुंडल का उल्लेख करें
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कर्ण का उल्लेख महान योद्धा और दानवीर के रूप में होता है। महाभारत के युद्ध में कर्ण के शौर्य की कहानियां पसरी पड़ी हैं। कर्ण अर्जुन के समानांतर शस्त्रों का ज्ञाता था, किंतु कर्ण को राज समाज में क्षत्रिय नहीं माना जाता था। कहते हैं कि राजा शूरसेन की पोषित कन्या कुंती के गर्भ से कर्ण का जन्म हुआ था, जिसे लोकलाज के चलते गंगा में प्रवाहित कर दिया गया था। बहते हुए इस बालक को धृतराष्ट्र का सारथी अधिरथ अपने घर ले गया, जिसे उसकी पत्नी राधा ने पाला-पोसा। इसलिए कर्ण को 'राधेय' या 'सूतपुत्र' भी कहा गया। 'सूतपुत्र' कहकर उसका उपहास भी किया जाता था, यद्यपि दुर्योधन ने अपनी मित्रता के चलते कर्ण को कलिंग देश का अधिपति बना दिया था।
अपनी प्रतिद्वंद्विता में अर्जुन कर्ण को हेय समझते थे। उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि कर्ण उनके बड़े भाई है। वह तो युद्ध प्रारंभ होने पर स्वयं कुंती और पितामह भीष्म ने कर्ण को पांडवों का भाई होने का रहस्य बताया था। तब कर्ण ने कुंती को वचन दिया था कि वह पांडवों में सिर्फ अर्जुन का वध करेगा। कर्ण और अर्जुन में जो भी एक जिंदा बचेगा, उससे पांडवों की पांच संख्या बनी रहेगी।
कर्ण की दानशीलता की ख्याति सुनकर इंद्र उनके पास कुंडल और कवच मांगने गए थे। कर्ण ने इंद्र की साजिश समझते हुए भी उनको कवच-कुंडल दानकर दिए थे। जब कर्ण घायल थे तो श्रीकृष्ण और अर्जुन कर्ण के पास ब्राह्मण बनकर पहुंचे और उससे दान मांगने लगे। कर्ण ने कहा इस समय और कुछ तो है नहीं, सोने के दांत हैं, कर्ण ने उन्हें ही तोड़कर भेंट किया।
श्रीकृष्ण ने कहा, यह स्वर्ण जूठा है। इस पर कर्ण ने अपने धनुष से बाण मारा तो वहां गंगा की तेज जलधारा निकल पड़ी उससे दांत धोकर कर्ण ने कहा अब तो ये शुद्ध हो गए। श्रीकृष्ण ने तभी कर्ण को कहा था कि 'तुम्हारी यह बाण गंगा युग युगों तक तुम्हारा गुणगान करती रहेगी।' रणभूमि में घायल कर्ण को श्रीकृष्ण ने आशीर्वाद दिया था 'जब तक सूर्य, चंद्र, तारे और पृथ्वी रहेंगे, तुम्हारी दानवीरता का गुणगान तीनों लोकों में किया जाएगा। संसार में तुम्हारे समान महान दानवीर न तो हुआ है और न कभी होगा।'
यह तो पृष्ठभूमि की कथा है। अखिलेश गुजरात के सूरत में चारधाम मंदिर, तीन पत्तो का वट वृक्ष का हजारों वर्षो का पौराणिक इतिहास जानने पहुंचे। तापी पुरान में कहा गया है कि जब कुरुक्षेत्र युद्ध में दानेश्वर कर्ण घायल होकर गिरे, तो कृष्ण ने उनकी अंतिम इच्छा पूछी थी। कर्ण ने कहा - द्वारिकाधीश मेरी अंतिम इच्छा है कि तुम्ही मेरा अंतिम संस्कार, एक कुमारी भूमि पर करना। सूरत के प्रमुख समाजसेवी वेलजी भाई नाकूम के साथ राजेंद्र चौधरी को लेकर अखिलेश सूरत में तापी नदी, जिसे 'कुंवारी माता नदी' भी कहा जाता है, के किनारे पहुंचे जहां कर्ण का मंदिर है।
तापी नदी में जलकुम्भी और गंदगी देखकर अखिलेश जी दुखी हुए। इसी नदी के किनारे कर्ण का अंतिम संस्कार हुआ था। दो दशकों से ज्यादा गुजरात में भाजपा की सरकार रही, लेकिन इस नदी की दशा नहीं सुधरी। तापी नदी इतिहास के महान क्षणों की गवाह है।
चारधाम मंदिर के महंत गुरु बलराम दास के उत्तराधिकारी महंत विजय दास ने बताया कि जब कृष्ण भगवान और पांडवों ने सब तीर्थधाम करते हुए तापी नदी के किनारे कर्ण का शवदाह किया, तब पांडवों ने कुंवारी भूमि होने पर शंका जताई तो श्रीकृष्ण ने कर्ण को प्रकट करके आकाशवाणी से कहलाया कि अश्विनी और कुमार मेरे भाई हैं। तापी मेरी बहन हैं। मेरा कुंवारी भूमि पर ही अग्निदाह किया गया है।
पांडवों ने कहा, हमें तो पता चल गया, परंतु आने वाले युगों को कैसे पता चलेगा? तब भगवान कृष्ण ने कहा कि यहां पर तीन टहनियों वाला वट वृक्ष होगा, जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक रूप होगा।
अखिलेश स्तब्ध शून्य में ताकते हुए उस कुंवारी भूमि पर कुछ समय खड़े रहे। उस दानवीर कर्ण के लिए उनके पास कोई शब्द नहीं थे। धीरे-धीरे वे आगे बढ़े, तो एक बड़ा जनसमूह अखिलेश जी के अभिनंदन के लिए खड़ा था।
गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को स्थितप्रज्ञ होने के लक्षण बताए थे। श्रीकृष्ण ने कहा था कि दैहिक, दैविक तथा भौतिक दुखों से जिसका मन उद्विग्न नहीं होता, जिसके मन से रागद्वेष, भय, क्रोध, नष्ट हो गए हों, वह स्थितप्रज्ञ है। ऐसा व्यक्ति अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होता है। गांधी जी ने उसे अनासक्तियोग का नाम दिया था।
अपनी प्रतिद्वंद्विता में अर्जुन कर्ण को हेय समझते थे। उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि कर्ण उनके बड़े भाई है। वह तो युद्ध प्रारंभ होने पर स्वयं कुंती और पितामह भीष्म ने कर्ण को पांडवों का भाई होने का रहस्य बताया था। तब कर्ण ने कुंती को वचन दिया था कि वह पांडवों में सिर्फ अर्जुन का वध करेगा। कर्ण और अर्जुन में जो भी एक जिंदा बचेगा, उससे पांडवों की पांच संख्या बनी रहेगी।
कर्ण की दानशीलता की ख्याति सुनकर इंद्र उनके पास कुंडल और कवच मांगने गए थे। कर्ण ने इंद्र की साजिश समझते हुए भी उनको कवच-कुंडल दानकर दिए थे। जब कर्ण घायल थे तो श्रीकृष्ण और अर्जुन कर्ण के पास ब्राह्मण बनकर पहुंचे और उससे दान मांगने लगे। कर्ण ने कहा इस समय और कुछ तो है नहीं, सोने के दांत हैं, कर्ण ने उन्हें ही तोड़कर भेंट किया।
श्रीकृष्ण ने कहा, यह स्वर्ण जूठा है। इस पर कर्ण ने अपने धनुष से बाण मारा तो वहां गंगा की तेज जलधारा निकल पड़ी उससे दांत धोकर कर्ण ने कहा अब तो ये शुद्ध हो गए। श्रीकृष्ण ने तभी कर्ण को कहा था कि 'तुम्हारी यह बाण गंगा युग युगों तक तुम्हारा गुणगान करती रहेगी।' रणभूमि में घायल कर्ण को श्रीकृष्ण ने आशीर्वाद दिया था 'जब तक सूर्य, चंद्र, तारे और पृथ्वी रहेंगे, तुम्हारी दानवीरता का गुणगान तीनों लोकों में किया जाएगा। संसार में तुम्हारे समान महान दानवीर न तो हुआ है और न कभी होगा।'
यह तो पृष्ठभूमि की कथा है। अखिलेश गुजरात के सूरत में चारधाम मंदिर, तीन पत्तो का वट वृक्ष का हजारों वर्षो का पौराणिक इतिहास जानने पहुंचे। तापी पुरान में कहा गया है कि जब कुरुक्षेत्र युद्ध में दानेश्वर कर्ण घायल होकर गिरे, तो कृष्ण ने उनकी अंतिम इच्छा पूछी थी। कर्ण ने कहा - द्वारिकाधीश मेरी अंतिम इच्छा है कि तुम्ही मेरा अंतिम संस्कार, एक कुमारी भूमि पर करना। सूरत के प्रमुख समाजसेवी वेलजी भाई नाकूम के साथ राजेंद्र चौधरी को लेकर अखिलेश सूरत में तापी नदी, जिसे 'कुंवारी माता नदी' भी कहा जाता है, के किनारे पहुंचे जहां कर्ण का मंदिर है।
तापी नदी में जलकुम्भी और गंदगी देखकर अखिलेश जी दुखी हुए। इसी नदी के किनारे कर्ण का अंतिम संस्कार हुआ था। दो दशकों से ज्यादा गुजरात में भाजपा की सरकार रही, लेकिन इस नदी की दशा नहीं सुधरी। तापी नदी इतिहास के महान क्षणों की गवाह है।
चारधाम मंदिर के महंत गुरु बलराम दास के उत्तराधिकारी महंत विजय दास ने बताया कि जब कृष्ण भगवान और पांडवों ने सब तीर्थधाम करते हुए तापी नदी के किनारे कर्ण का शवदाह किया, तब पांडवों ने कुंवारी भूमि होने पर शंका जताई तो श्रीकृष्ण ने कर्ण को प्रकट करके आकाशवाणी से कहलाया कि अश्विनी और कुमार मेरे भाई हैं। तापी मेरी बहन हैं। मेरा कुंवारी भूमि पर ही अग्निदाह किया गया है।
पांडवों ने कहा, हमें तो पता चल गया, परंतु आने वाले युगों को कैसे पता चलेगा? तब भगवान कृष्ण ने कहा कि यहां पर तीन टहनियों वाला वट वृक्ष होगा, जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक रूप होगा।
अखिलेश स्तब्ध शून्य में ताकते हुए उस कुंवारी भूमि पर कुछ समय खड़े रहे। उस दानवीर कर्ण के लिए उनके पास कोई शब्द नहीं थे। धीरे-धीरे वे आगे बढ़े, तो एक बड़ा जनसमूह अखिलेश जी के अभिनंदन के लिए खड़ा था।
गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को स्थितप्रज्ञ होने के लक्षण बताए थे। श्रीकृष्ण ने कहा था कि दैहिक, दैविक तथा भौतिक दुखों से जिसका मन उद्विग्न नहीं होता, जिसके मन से रागद्वेष, भय, क्रोध, नष्ट हो गए हों, वह स्थितप्रज्ञ है। ऐसा व्यक्ति अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होता है। गांधी जी ने उसे अनासक्तियोग का नाम दिया था।
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