कर्ण का रोम-रोम दुर्योधन का ऋणी क्यों था?
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है ऋणी कर्ण का रोम-रोम, जानते सत्य यह सूर्य-सोम, तन, मन, धन दुर्योधन का है, यह जीवन दुर्योधन का है। सुरपुर से भी मुख मोड़ूँगा, केशव! मैं उसे न छोड़ूँगा। “सच है, मेरी है आस उसे, मुझपर अटूट विश्वास उसे, हाँ, सच है मेरे ही बल पर, ठाना है उसने महासमर।
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