कर्ण ने क ुं ती को क्या आश्वासन दिया थ
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kab ye jhuta hai
Explanation:
करण ने कुंती को वचन दिया था कि आप के 5 पुत्र इस युद्ध में जीवित रहेंगे।
Explanation:
महाभारत का युद्ध द्वापरयुग का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है। कौरवों और पांडवों ने युद्ध के समय भाग लेने वाले जनपदों की स्थिति को देखा, तो उन्हें यह पता चल गया कि युद्ध होगा। इसके बाद दोनों पक्षों ने युद्ध की तैयारियां शुरू कर दीं।
दुर्योधन 13 वर्ष पहले से ही युद्ध की तैयारी कर रहा था। उसने बलराम जी से गदा युद्ध की शिक्षा प्राप्त की तथा कठिन परिश्रम और अभ्यास से गदा युद्ध करने में भीम से भी अच्छा हो गया। उधर, शकुनि ने इन वर्षों में अधिकतर जनपदों को अपनी तरफ कूटनीतिक तरीकों से मिलाकर अपना साथी बना लिया।
इधर दुर्योधन, कर्ण को अपनी सेना का सेनापति बनाना चाहता था परन्तु शकुनि के समझाने पर दुर्योधन ने पितामह भीष्म को अपनी सेना का सेनापति बनाया, जिसके कारण भारत और विश्व के कई जनपद दुर्योधन के पक्ष मे हो गए।
पाण्डवों की तरफ केवल वही जनपद थे, जो श्रीकृष्ण के पक्ष मे थे। महाभारत के अनुसार महाभारत काल में कुरु राज्य विश्व का सबसे बड़ा और शक्तिशाली जनपद था। विश्व के सभी जनपद कुरु राज्य से कभी युद्ध करने की भूल नहीं करते थे एवं सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखते थे।
सभी जनपद कुरुओं द्वारा लाभान्वित होने के लोभ से युद्ध में उनकी सहायता करने के लिये तैयार हो गए। पाण्डवों और कौरवों द्वारा यादवों से सहायता मांगने पर श्रीकृष्ण ने पहले तो युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की और फिर कहा कि 'एक तरफ मैं अकेला और दूसरी तरफ मेरी एक अक्षौहिणी नारायणी सेना', अब अर्जुन व दुर्योधन को इनमें से एक का चुनाव करना था।
अर्जुन ने तो श्रीकृष्ण को ही चुना, तब श्रीकृष्ण ने अपनी एक अक्षौहिणी सेना दुर्योधन को दे दी और खुद अर्जुन का सारथी बनना स्वीकार किया। इस प्रकार कौरवों ने 11 अक्षौहिणी तथा पाण्डवों ने सात अक्षौहिणी सेना एकत्रित कर लिया।
इस बीच श्रीकृष्ण कर्ण से मिले, उन्होंने कर्ण से कहा- वह पाण्डवों का ही भाई है अतः वह पाण्डवों की तरफ से युद्ध करे, परन्तु कर्ण ने दुर्योधन के ऋण और मित्रता के कारण कौरवों का साथ नहीं छोड़ा। इसके बाद कुंती के विनती करने पर कर्ण ने अर्जुन को छोड़कर उसके शेष चार पुत्रों को अवसर प्राप्त होने पर भी न मारने का वचन दिया।
इधर, इन्द्र ने भी ब्राह्मण का वेष बनाकर छल से कर्ण से उसके कवच और कुण्डल ले लिए। जिससे कर्ण की शक्ति कम हो गई और पाण्डवों का उत्साह बढ़ गया क्योंकि उस कवच के कारण कर्ण को किसी भी दिव्यास्त्र से मारा नहीं जा सकता था।