करो योग रहो निरोग पर एक स्वरचित कविता लिखिए
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ज़ीस्त शैली ,अब विषैली,
आलस बढ़ा,व्याधि फैली।
निरोग तभी ,मानव जाति,
योगा करे , कपालभांति,
स्मरण शक्ति, बढ़ती बुद्धि,
योग करता ,मन की शुद्धि।
रहती सदा , शुद्ध आत्मा,
व्याधियों का,जड़ी खात्मा।
जन जो करे, कर्म योगी,
मनवा चंगा , तन निरोगी।
तनाव मुक्त ,मिले ऊर्जा,
लगे न दाम , न ही खर्चा ।
योगी बनो , भोगी नहीं,
कहे पुराण , वेदा यही।
पतंजलि का , योग सूत्र,
सुखी जीवन मूल मंत्र।।
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