करभावत काम
सन्धि विच्छेद भीलतासी
का
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- इससे तो प्रज्ञा मंद पड़
- जाती है, संकल्प क्षीण होता है, विकास रुक जाता है तथा निर्णय क्षमता नहीं आती। मनुष्य को अपना भाग्यविधाता
- स्वयं होना चाहिए। हमेशा याद रखो, अपने फैसले तुम्हें स्वयं ही करने होंगे। विश्वासपात्र मित्र भी तुम्हारी ज़िम्मेदारी
- नहीं ले सकता। हमें अनुभवी लोगों के अनुभवों से लाभ उठाना चाहिए, लेकिन हमारे निर्णयों तथा विचारों से ही
हमारी रक्षा व हमारा पतन होगा। हमें नज़रें तो नीचे रखनी हैं, लेकिन सामने का रास्ता भी देखना है। हमारा व्यवहार
कोमल तथा लक्ष्य उच्च होना चाहिए। हमारी प्रवृत्ति ऐसी होनी चाहिए कि संक्रमणकाल में भी हम स्वयं को
साधारण रख पाएँ। वही मनुष्य कर्मक्षेत्र में श्रेष्ठ और उत्तम रहते हैं, जिनमें बुद्धि, चतुराई तथा दृढ़ निश्चय होता है।
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