करके पहाड़ सा पाप मौन रह जाऊं राई भर का अनुताप न करने पाऊ।ka alankar btaiye
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Answer:
अलंकार अनुप्रास और उपमा
करके पहाड़-सा पाप मौन रह जाऊँ?”
राई भर भी अनुताप न करने पाऊँ?”
थी सनक्षत्र शशि-निशा ओस टपकाती,
रोती थी नीरव सभा हृदय थपकाती।
उल्का-सी रानी दिशा दीप्त करती थी,
सबमें भय-विस्मय और खेद भरती थी।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ने कैकेयी के पश्चाताप को अपूर्व ढंग से अभिव्यंजित किया है।
व्याख्या कैकेयी, भरत की सौगन्ध खाते हुए राम से कहती हैं कि सौगन्ध खाने से व्यक्ति की दुर्बलता प्रकट होती है, परन्तु स्त्रियों के लिए इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं हैं। वह राम को सम्बोधित करते हुए कहती हैं कि हे राम! मुझे तुम्हारे वनवास के लिए भरत ने नहीं उकसाया था। यदि यह सच नहीं तो मैं पति के समान ही। अपना पुत्र भी खो बैलूं। मुझे यह कहने से कोई न रोके। मैं जो कह रही हैं, सभी सुन लें। यदि मेरे कथनों में कोई यथार्थ बात हो तो उसे ग्रहण कर लें। मुझसे यह न सहा। जा सकेगा कि मैं इतना बड़ा पाप करके थोड़ा भी पश्चाताप प्रकट न करूँ और मौन रह जाऊँ।
कैकेयी के यह सब कहने के दौरान तारों से भरी चाँदनी रात ओस के रूप में अश्रु-जल बरसा रही थी और नीचे मौन सभा हृदय को थपथपाते हुए रुदन कर रही थी। यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि कैकेयी के हृदय-परिवर्तन और उनके पश्चाताप को देख सभा में उपस्थित सभी लोगों की संवेदना उनके साथ थी मानो सभासद
सहित प्रकृति ने भी उन्हें उनके अपराध के लिए क्षमा कर दिया हो।
रानी कैकेयी, जिसने अपनी अनुचित माँग से पूरे अयोध्या और वहाँ के निवासियों का जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया था, आज पश्चाताप की अग्नि में जलकर चारों ओर सदभाव की किरणें बिखेर रही थीं। उनके इस नए रूप के परिणामतः वहाँ उपस्थित लोगों में एक साथ भय, आश्चर्य और शोक के भाव उमड़ रहे थे।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) यहाँ कवि ने कैकेयी के पश्चाताप में उपस्थित लोगों व प्रकृति को भी उनकी संवेदना का हिस्सा बनाने का भाव व्यक्त किया है।
(ii) रस करुण
कला पक्ष
भाषा परिष्कृत खड़ीबोली शैली प्रबन्धात्मक
छन्द मदाक्रान्ता अलंकार अनुप्रास और उपमा
Explanation:
यह उत्तर आपकी सहायता करेगा
Answer:
केकई
Explanation:
राम से केकई ने कहा था:.