Hindi, asked by dewendrasingh8049, 10 months ago

Karam hi jeevan hai 250 words essay

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Answered by parijindal47
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कर्म  शब्द व्यापक अर्थ को रखता है। कर्म या काम तो हर किसी के जीवन का अटूट अंग है। यहाँ तक प्रकृति भी कर्मशील रहती है। सूरज समय पर न उगे तो कौन हमें गतिशील करें। वर्षा रानी समय पर न बरसे तो क्या करे किसान भाई। कर्म करने से शरीर स्वस्थ रहता है। 

वस्तुतः क्रियाशील जीव मानसिक व्यथा से पीडित नही होता। हर कोई अपनी शिक्षा,इच्छा के अनुसार या परंपरागत व्यवसाय को अपनाता है। दुनिया में आए है तो जीना ही पड़ेगा और जीने के लिए रोटी कपड़ा मकान अनिवार्य हैं। और इनकी पूर्ति के लिए कर्म करना अत्यावश्यक है। ऐसे जीवन पर धिक्कार है जो दूसरों पर आश्रित हो। किसान सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक खेती करता है। चहचहाते फसल से जो आनंद प्राप्त होता है उसकी तुलना में स्वर्ग भी नीरस लगे। मजदूर दिन रात काम कर अपना और परिवार का पेट भरता है। अपनी कमाई की दो रोटी तन मन को सुखून देती हैं।  सक्रियता मानव को सतर्क रहने को प्रेरित करती है। निष्क्रिय मानव आलसी हो जाता है। और जब आलस्य शरीर में वास कर ले तो उससे बड़ा शत्रु दूसरा कोई नही हो सकता। नेकी व ईमानदारी से किए कर्म का परिणाम सुखदायक होता है। कर्म जैसा भी हो धार्मिक, सामाजिक या फिर पारंपरिक लगन और उत्साह से पूर्ण हो तो मन प्रफुल्लित हो उठता है। नियमित समय में काम हो जाने पर असीम आनंद की अनुभूति होती है। दूसरों के हित के लिए किए गए कर्म से अतुलनीय तृप्ति मिलती है। मन शान्त बुद्धि अविचल हो तो दुख की कैसी चिंता ? गीताचार्य कहतें हैं कि हमारा अधिकार कर्म करने में है फल पर कदाचित नही। अतः आजीवन अथक कर्म करना भी सौभाग्य होगा। कर्मयोगी स्वतंत्र होता है उसे किसी का भय नही किसी से विद्रोह नही।फलस्वरूप उसका जीवन सुख शांति से परिपूर्ण आनंदमय हो जाता है।

Answered by ansarishahnaz999
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काम पूजा है प्रसिद्ध कहावत जिसका अर्थ है कि काम सही अर्थों में पूजा है। काम वास्तव में मनुष्य की पूजा है क्योंकि काम के बिना वह पृथ्वी पर जीवित नहीं रह सकता। यह हमारा काम है जो हमें नया चेहरा देता है और जीवन में अर्थ जोड़ता है।

कार्य के बिना जीवन नीरस, निर्बाध, निष्क्रिय और नीरस होगा। महान सभ्यता और संस्कृति को केवल प्रतिबद्ध कार्य के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है। मनुष्य ईश्वर की सबसे बुद्धिमान, कुशल और सक्षम रचना है, जो कठिन परिश्रम से कुछ भी संभव कर सकता है, जिसके कारण उपासना पर अत्यधिक महत्व दिया जाता है। मनुष्य के पास एक अधिक बुद्धिमान मस्तिष्क है जिसके उपयोग से वह तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए सही काम तय कर सकता है।

एक बेकार आदमी जो अपने काम में दिलचस्प रूप से शामिल नहीं होता है, आमतौर पर एक दुखी व्यक्ति बन जाता है। यह अच्छी तरह से कहा जाता है कि एक निष्क्रिय दिमाग शैतान की कार्यशाला बन जाता है। राष्ट्र तब और मजबूत हो जाता है जब उसकी श्रमशक्ति पूरी तरह से और उपयुक्त रूप से इच्छुक क्षेत्र में नियोजित होती है।

हमारे इच्छुक क्षेत्र में पूरी प्रतिबद्धता के साथ काम करने से हमें वास्तविक शांति और संतुष्टि मिलती है जो हमें सफलता की ओर ले जाती है। लगातार काम हमें दिन-प्रतिदिन अधिक सक्षम बनाता है जो बहुत आत्मविश्वास विकसित करता है। हमें अपने भीतर सुधार और स्थिरता के लिए काम करना चाहिए न कि पुरस्कार और गौरव के लिए। हमें आलसी नहीं होना चाहिए और प्रगति की विशाल इच्छा के साथ सद्भाव के साथ काम करना चाहिए।

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