करत बेगरजी प्रीति , पारा बिरला कोई साँई - पंक्ति दवारा कवि क्या स्पष्ट करना चाहता है ?
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करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥ 'गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय' – पंक्ति का भावार्थ लिखिए। उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति में गिरिधर कविराय ने मनुष्य के आंतरिक गुणों की चर्चा की है।
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