करती हो? यह घृणित व्यवहार तुम्हें शोभा नहीं देता है।" राजा की बात सुनकर गंगा मन-ही-मन मुसकराई. परंतु क्रोध का अभिनय करती हुई आपको सौंप दूंगी।" बोली-"राजन्! क्या आप अपना वचन भूल गए हैं? मालूम होता है कि आपको पुत्र से ही मतलब है, मुझसे नहीं। आपको मेरी क्या परवाह है! ठीक है, पर शर्त के अनुसार मैं अब नहीं ठहर सकती। हाँ, आपके इस पुत्र को मैं नदी में नहीं फेंकूँगी। इस अंतिम बालक को मैं कुछ दिन पालूँगी और फिर पुरस्कार के रूप में " यह कहकर गंगा बच्चे को साथ लेकर चली गई। यही बच्चा आगे चलकर भीष्म पितामह के नाम से विख्यात हुआ। गंगा के चले जाने से राजा शांतनु का मन विरक्त हो गया। उन्होंने भोग-विलास से जी हटा लिया और राज-काज में मन लगाने लगे। एक दिन राजा शिकार खेलते-खेलते गंगा के तट पर चले गए, तो देखा किनारे पर खड़ा एक सुंदर और गठीला युवक गंगा की बहती हुई धारा पर बाण चला रहा था। वाणों की बौछार से गंगा की प्रचंड धारा एकदम रुकी हुई थी। यह दृश्य देखकर शांतनु दंग रह गए। इतने में ही राजा के सामने स्वयं गंगा आकर उपस्थित हो गई। गंगा ने युवक को अपने पास बुलाया और राजा से बोली-“राजन्, पहचाना मुझे और इस युवक को? यही आपका और मेरा आठवाँ पुत्र देवव्रत है। महर्षि वसिष्ठ ने इसे शिक्षा दी है। शास्त्र-ज्ञान में शुक्राचार्य और रण-कौशल में परशुराम ही इसका मुकाबला कर सकते हैं। यह जितना कुशल योद्धा है, उतना ही चतुर राजनीतिज्ञ भी है। आपका पुत्र, मैं आपको सौंप रही हूँ। अब ले जाइए इसे अपने साथा" गंगा ने देवव्रत का माथा चूमा और आशीर्वाद देकर राजा के साथ उसे विदा कर दिया।
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महाभारत की कहानी!
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आपको पुत्र से ही मतलब है, मुझसे नहीं। आपको मेरी क्या परवाह है! ठीक है, पर शर्त के अनुसार मैं अब नहीं ठहर सकती। हाँ, आपके इस पुत्र को मैं नदी में नहीं फेंकूँगी। इस अंतिम बालक को मैं कुछ दिन पालूँगी और फिर पुरस्कार के रूप में " यह कहकर गंगा बच्चे को साथ लेकर चली गई। यही बच्चा आगे चलकर भीष्म पितामह के नाम से विख्यात हुआ। गंगा के चले जाने से राजा शांतनु का मन विरक्त हो गया। उन्होंने भोग-विलास से जी हटा लिया और राज-काज में मन लगाने लगे। एक दिन राजा शिकार खेलते-खेलते गंगा के तट पर चले गए, तो देखा किनारे पर खड़ा एक सुंदर और गठीला युवक गंगा की बहती हुई धारा पर बाण चला रहा था। वाणों की बौछार से गंगा की प्रचंड धारा एकदम रुकी हुई थी। यह दृश्य देखकर शांतनु दंग रह गए। इतने में ही राजा के सामने स्वयं गंगा आकर उपस्थित हो गई। गंगा ने युवक को अपने पास बुलाया और राजा से बोली-“राजन्, पहचाना मुझे और इस युवक को? यही आपका और मेरा आठवाँ पुत्र देवव्रत है। महर्षि वसिष्ठ ने इसे शिक्षा दी है। शास्त्र-ज्ञान में शुक्राचार्य और रण-कौशल में परशुराम ही इसका मुकाबला कर सकते हैं। यह जितना कुशल योद्धा है, उतना ही चतुर राजनीतिज्ञ भी है। आपका पुत्र, मैं आपको सौंप रही हूँ। अब ले जाइए इसे अपने साथा" गंगा ने देवव्रत का माथा चूमा और आशीर्वाद देकर राजा के साथ उसे
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Mahabharata ki kahani
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