करत-करत अभ्यास तें, जड़मति होत सुजान। रसरी आवत-जात तें, सिल पर परत निसान
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rope coming going stone gains nishan
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करत-करत अभ्यास तें, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत-जात तें, सिल पर परत निसान
उपर्युक्त दोहा महान कवी वृन्द द्वारा रचा गया है । इसमें वे कहना चाहते हैं की निरंतर परिश्रम करते रहने से असाध्य माना जाने वाला कार्य भी सिद्ध हो जाया करता है । असफलता के माथे में कील ठोककर सफलता पाई जा सकती है । जैसे कूंए की जगत पर लगी सिल (शिला) पानी खींचने वाली रस्सी के बार-बार आने-जाने से , कोमल रस्सी की रगड़ पडऩे से घिसकर उस पर निशान अंकित हो जाया करता है ।
उसी तरह निरंतर और बार-बार अभ्यास यानि परिश्रम करते रहने से एक निठल्ला और जड़-बुद्धि समझा जाने वाला व्यक्ति भी कुछ करने योज्य बन सकता है। सफलता प्राप्त कर सकता है।
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