करत-करत अभ्यास तें, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत-जात तें, सिल पर परत निसान।
नैना देत बताय सब, हिय को हेत-अहेत।
जैसे निरमल आरसी, भली-बुरी कहि देत ।।
वृंद
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yamak alankar bata rahe h @@p
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