करता था तो क्यूँ रह्या, अब करि क्यूं पछताइ।
बोवै पेड़ बबूल का, अंब कहाँ तैं खाइ।1.27॥
कबीर इस संसार कों, समझाऊँ कै बार।
पूंछ ज पकड़े भेद की, उतरया चाहै पार 2.20।।
जैसी मुष तैं नीकसै, तैसी चालै नाहिं।
मानिष नहीं ते स्वान गति, बांध्या जमपुर जाँहिं।।3. 3।।
पद गाएँ मन हरषियाँ, साथी कहां अनंदा
सो तन नाँव न जांणियां, गल में पड़िया फंध।। 4.4।।
जप तप दी थोथरा, तीरथ व्रत बेसास।
सूवै सैंबल सेविया, यौ जग चल्या निरास।। 5.55 I
जांनि बुझि साचहिं तजै, करै झूठ सूँ नेह।
ताकी संगति राम जी, सुपिनै ही जिनि देहु।5.91
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Aisa kaam kyu karna Jiske baad pachhtawa Ho Phir jo kiya hai wahi to paogi
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जैसी मुष तैं नीकसै, तैसी चालै नाहिं। मानिष नहीं ते स्वान गति, बांध्या जमपुर जाँहिं
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