Kare burai sukh chahe dohe ka earth
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अर्थात् :-
कर्म के अनुसार ही फल मिलता है।
कर्म के अनुसार ही फल मिलता है।
srirangesh1:
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करे बुराई सुख चाहे ये पूरा दोहा इस प्रकार है...
करै बुराई सुख चहै, कैसे पावे कोय।
रोपै पेड़ बबूल का, आम कहां ते होय।।
संदर्भ — यह दोहा कबीर दास जी द्वारा लिखा गया दोहा है। इस दोहे का अर्थ इस प्रकार है...
भावार्थ — कबीर दास कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति बुरा कार्य करता है तो सुख की कामना कैसे की जा सकती है। बुराई का फल हमेशा बुरा ही मिलेगा। बुराई करके सुख की कामना करना व्यर्थ है। जिस तरह अगर बबूल का पेड़ बोएंगे तो कांटे ही मिलेंगे। बबूल का पेड़ बोकर आम पाने की उम्मीद नहीं की जा सकती। इसी तरह हर इंसान को अपने कर्म के अनुसार ही उसका फल मिलता है। वह अच्छे कर्म करेगा तो अच्छा फल मिलेगा। बुरे कर्म करेगा तो बुरा फल मिलेगा।
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