Hindi, asked by chetnavij4140, 9 months ago

Karm bada hai ya bhagya ? nibandh likho plzzz

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Answered by heeraskaushik
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Explanation:

भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कहा कि राज्य तुम्हारे भाग्य में है या नहीं यह तो बाद में, पहले तुम्हें युद्ध तो लड़ना पड़ेगा। तुम्हें अपना कर्म तो करना पड़ेगा अर्थात स्वजनों के खिलाफ युद्ध तो लड़ना पड़ेगा। तुलसीदासजी ने भी श्रीरामचरित मानस में लिखा है- 'कर्म प्रधान विश्व करि राखा'। अर्थात युग तो कर्म का है।भाग्य और कर्म का किसी विशेष वर्ग, जाति, भाषा और लिंग से नहीं, बल्कि चराचर प्राणी जगत से संबंध है। मनुष्य जैसे ही पंचतत्वों से बने इस शरीर को लेकर मां के गर्भ से बाहर निकलता है, उसका कर्म आरम्भ हो जाता है। यह कार्य तब तक चलता रहता है, जब तक इस धरती पर वह अन्तिम श्वास लेता है। इसलिए मानव जीवन को कर्मक्षेत्र कहा जाता है। मानव की जीवंतता उसके चलते रहने में, उसके कर्मशील बने रहने में ही है। इसीलिए जीवन की तुलना गाड़ी से की जाती है। इस कर्मक्षेत्र में कर्म के फल से ही जीवन में सुख-दुख आते हैं। कर्म का फल यदि सुखद हो तो सुख की अनुभूति होती है, दुखद हो, निराशाजनक हो तो दुख की अनुभूति होती है। लेकिन हम सबके जीवन में अक्सर ऐसा भी होता है, जब उसने कर्म अच्छा किया हो और उसका परिणाम या फल वैसा न मिला हो। कर्म के अनुकूल फल न मिलने और उसके अधिक या कम मिलने पर- दोनों ही स्थितियों में हम भाग्य का नाम लेते हैं। इसीलिए कर्मफल और भाग्य ऐसे विषय हैं, जिनके बारे में जानने के लिए हर व्यक्ति सदा आतुर रहता है। भारतीय चिन्तन कर्म को प्रधान मानता है। गीता में कृष्ण समझाते हैं, तेरा अधिकार कर्म करना है, फल पर तेरा अधिकार नहीं है। लेकिन मनुष्य अपने कर्म के आधार पर ऊंच-नीच, श्रेष्ठ-निकृष्ट, अच्छे-बुरे मनुष्य की कोटि में जाना चाहता है। यदि फल की चिन्ता नहीं करे तो फिर उसे भाग्य पर आश्रित रहना होगा, भरोसा करना होगा। अब मन में जिज्ञासा उठती है कि फिर भाग्य क्या है? किसी ने भाग्य को ईश्वर की इच्छा समझा है, तो किसी ने भाग्य को समय का चक्र जिसे जीतना असंभव है। कोई मानता है कि जो आज का पुरुषार्थ है, वही कल का भाग्य है। असल में भाग्य को ईश्वरप्रदत्त इसलिए मान लिया जाता है कि वह हमारे वर्तमान के कर्म पर आधारित नहीं होता। जब भी हमारी इच्छा के खिलाफ या इच्छा से कम या अधिक प्राप्ति होती है तो हम भाग्य को ही उसका आधार मान लेते हैं, लेकिन है वह भी कर्म का ही फल। जो दृश्य है वह कर्म और जो अदृश्य है वह भाग्य। जो दिखाई दे रहा है वह कर्म और जो नहीं दिखाई दे रहा है वह भाग्य। भारतीय चिन्तन पुनर्जन्म पर विश्वास करता है।

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