Karnataka me aagl- frasisj sagarsh Ki vivechana kijiye
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कर्नाटक का प्रथम युद्ध (The First Carnatic war, 1746-48)
1740 में आस्ट्रिया के उत्तराधिकार को लेकर यूरोप में ब्रिटेन और फ्रांस के मध्य संघर्ष प्रारंभ हो गया.
कर्नाटक का प्रथम युद्ध इस संघर्ष का विस्तार मात्र ही था.
क्योंकि प्रायः जैसे ही यूरोप में इन दोनों शक्तियों के मध्य कोई युद्ध आरंभ हो जाता था, भारत में भी इन दोनों कंपनियों पर प्रभाव पड़ता था.
1746 में आंग्ल-फ्रांसीसी कम्पनियों के मध्य कर्नाटक में युद्ध प्रारंभ हो गया.
बारनैट के नेतृत्व में ब्रिटिश नौसेना ने कुछ फ्रांसीसी जलपोतों पर कब्जा कर लिया.
पांडिचेरी के फ्रेंच गवर्नर जनरल डूप्ले ने मॉरीशस स्थित फ्रांसीसी गवर्नर ला बुर्डों से सहायता प्राप्त कर ब्रिटिश प्रभुत्व वाले प्रदास नगर को जल एवं थल दोनों ही मार्गों से घेर लिया.
कुछ ही समय बाद मद्रास ने आत्मसमर्पण कर दिया.
ला बुर्डों ने एक बड़ी धनराशि के बदले मद्रास नगर को वापस ब्रिटेन को लौटा दिया किन्तु डूप्ले इस कार्य से सहमत नहीं था अतः उसने मद्रास को पुनः जीत लिया.
परन्तु वह पांडिचेरी से 18 मील दूर दक्षिण में स्थित फोर्ट सेन्ट डेविड नामक स्थान को जीतने में असफल रहा.
कर्नाटक का प्रथम युद्ध सेन्ट येमे के युद्ध के लिए भी स्मरणीय है.
इस युद्ध का प्रमुख कारण मद्रास पर फ्रांसीसियों का अधिकार होना था.
डुप्ले ने कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन को यह वचन दिया था कि वह मद्रास को जीत कर नवाब को सौंप देगा.
किन्तु समय आने पर डूप्ले अपने वादे से मुकर गया.