karneliya ka geet me kon sa ras pradhan hai
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देवसेना का गीत छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद जी के नाटक 'स्कंदगुप्त' से लिया गया है , इसमें देवसेना की वेदना का मार्मिक चित्रण किया गया है। देवसेना जो मालवा की राजकुमारी है उसका पूरा परिवार हूणों के हमले में वीरगति को प्राप्त होता है। वह रूपवती / सुंदर थी लोग उसे तृष्णा भरी नजरों से देखते थे , लोग उससे विवाह करना चाहते थे , किंतु वह स्कंदगुप्त से प्यार करती थी , किंतु स्कंदगुप्त धन कुबेर की कन्या विजया से प्रेम करता था। जिसके कारण वह देवसेना के प्रणय - निवेदन को ठुकरा देता है। परिवार सभी सदस्यों के मारे जाने के उपरांत उसका कोई सहारा नहीं रहता , जिसके कारण वह इस जीवन में अकेली हो जाती है। जीवन - यापन के लिए जीवन की संध्या बेला में भीख मांगकर जीवनयापन करती है और अपने जीवन में व्यतीत क्षणों को याद कर कर दुखी होती है।
आह ! वेदना मिली विदाई !
मैंने भ्रम-वश जीवन संचित,
मधुकरियो की भीख लुटाई।
छलछल थे संध्या के श्रमकण
आंसू - से गिरते थे प्रतिक्षण।
मेरी यात्रा पर लेती थी-
निरवता अनंत अंगड़ाई।
शब्दार्थ :
वेदना - पीड़ा। भ्रमवश - भ्रम के कारण। मधुकरियो - पके हुए अन्न। श्रमकण - मेहनत से उत्पन्न पसीना। नीरवता - खामोशी। अनंत - अंतहीन।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियां देवसेना का गी