Kartavy nistha sipahi ki atamkatha
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मैं एक सैनिक हूँ भारतीय सशस्त्र सेना में। मेरे लिए सैनिक होना बड़े ही गर्व की बात है। वास्तव में मेरा जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ है, जिस का एक-न-एक सदस्य पिछली कई सदियों से सैनिक का जामा पहन कर अपनी देश-जाति के लिए प्राणों का बलिदान करता आ रहा है। मैं जब छोटा-सा था, तो मेरे सैनिक दादा मुझे सन् 1857 में लड़े गए पहले स्वतंत्रता संग्राम की कहानियाँ सुनाया करते थे। उन्होंने बताया था कि उनके पिता यानि मेरे परदादा ने पहले स्वतंत्रता संघर्ष में वीर सेनापति तात्या टोपे की सेना के एक भाग के कामण्डर के रूप में भाग लिया था। परदादा के पिता और दादा भी महाराणा प्रताप के समय की कहानियाँ सुना कर उन्हें बताया करते थे कि तब भी हमारे कई पूर्वज स्वतंत्रता सेनानी थे। दुर्भाग्य मेरे दादा को अंग्रेजी-सेना में रहकर पहले विश्वयुद्ध में उनकी तरफ से संघर्ष करना पड़ा था, जबकि मेरे पिता द्वितीय विक के अवसर पर कहीं मिडिल ईस्ट में युद्ध करते हुए जापानियों द्वारा बन्दी बना लि थे। इसे उनका सौभाग्य ही कहना चाहिए और वे ऐसा ही मानते भी थे कि बाद मेंआजाद हिन्द फौज में रहकर भारत के महान् सपूत नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का अंगरक्षक तक बन कर सैनिक कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
इस प्रकार मेरे पूर्वजों के इतिहास में हम जितना भी अतीत की ओर लौटते जा उतना ही यह स्पष्ट होता जाता है कि मेरी रगों में एक सैनिक वंश का खून ही बह रहा है। मैं अपने परिवार और वंश की इस परम्परा को आगे बढ़ा पा रहा हूँ, यह मेरा सौभाग्य है। इस बात को लेकर भी मुझे अपने सैनिक होने पर एक विशेष तरह के गर्व और गौरव का अनुभव होने लगता है। जो हो, मेरा जीवन का असली मजा तो देश-जाति के समय-समय पर रक्षा के लिए मोर्चे पर शत्रुओं के दाँत खट्टे करते समय ही आया करता है, पर शान्ति-काल में भी हम सैनिकों का जीवन घड़ी की सुई के-से अनुशासन के साथ चला और व्यतीत हुआ करता है।