Karun Ras ki paribhasha udaharan sahit
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करुण रस - प्रिय वस्तु के नष्ट होने तथा अनिष्ट की प्राप्ति से चित्त में जो विकलता आती है, उसे करुण रस कहते हैं। जैसे-
राम राम कहि राम कहि, राम राम कहि राम।
तनु परिहरि रघुवर-विरह, राउ गएउ सुरधाम
राम राम कहि राम कहि, राम राम कहि राम।
तनु परिहरि रघुवर-विरह, राउ गएउ सुरधाम
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प्रिय वस्तु के नष्ट होने तथा अनिष्ट की प्राप्ति से चित्त में जो विकलता आती है, उसे करुण रस कहते है ।
अर्थात
करुण रस ( रस के भेद ) जहां किसी हानि के कारण शोक भाव उपस्थित होता है , वहां ' करुण रस ' उपस्थित होता है। पर हानि किसी अनिष्ट किसी के निधन अथवा प्रेमपात्र के चिर वियोग के कारण संभव होता है।
उदहारण -
राम राम कहि राम कहि, राम राम कहि राम। तनु परिहरि रघुवर-विरह, राउ गएउ सुरधाम।।
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