Karuna rash ka udhaharan
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करुण रस : - जहाँ पर पुनः मिलने की आशा ख़त्म हो जाये | करुण रस कहलाता हैं |
स्थायी भाव- शोक
अनुभाव- भूमि पर गिरना : छाती पीटना, रुदन, प्रलाप, मूर्च्छा इत्यादि
संचारी भाव- निर्वेद, मोह, व्याधि , ग्लानि, स्मृति, श्रम,विषाद,जड़ता,दैत्य इत्यादि |
उदाहरण :-
अभी तो मुकुट बँधा था माथ,
हुए कल ही हल्दी के हाथ,
खुले भी न थे लाज के बोल,
खिले थे चुम्बन शून्य कपोल,
हाय रुक गया यहीं संसार,
बना सिंदूर अनल अंगार,
स्पष्टीकरण- इन पंक्तियों में विनिष्ट पति आलम्बन तथा मुकुट का बांधना, हल्दी के हाथ होना, लाज के बोलों का न खुलना आदि उद्दीपन है | वायु से आहत लतिका के सामान नायिका का बेसहारे पड़े होना 'अनुभाव' है |
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Q.1.- करुण रस का मूल स्थाई भाव लिखिए
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Q.2.- एक करुण रस से भरा संवाद.
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Q.3.- ‘करुण' अथवा 'हास्य रस की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।
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