karyalayin ke assay or swarup pr prakash daliye
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प्रयोजनमूलक हिंदी : कार्यालयी हिंदी के प्रयोग क्षेत्र टिपण्णी
प्रयोजनमूलक हिंदी : कार्यालयी हिंदी के प्रयोग क्षेत्र टिपण्णी
भूमिका
“यह आलेख केंद्रीय हिंदी संस्था के हिंदी शिक्षण निष्णात के पाठ्यक्रम अनुसार वैक्ल्पिक प्रशन-पत्र - 8 के रूप में प्रयोजनमूलक हिंदी के अंतर्गत परियोजना कार्य के रूप में कार्यालयी हिंदी के प्रयोग क्षेत्र टिप्पण शीर्षक पर परियोजना कार्य है”
मेरी रुचि बचपन से ही हिंदी के प्रति रही है, सर्व प्रथम मुझे हिंदी का ज्ञान मेरे पिताजी तथा मेरे पितामह से प्राप्त हुई | कुछ वर्ष पूर्व मणिपुर हिंदी परिषद से संबद्ध होकर मुझे हिंदी की सेवा करने का अवसर मिला | तब इस संस्था के कार्यालय में होने वाले हिंदी के विशिष्ट रूप को जान ने की जिज्ञासा थी | अपनी व्यक्तिगत व्यस्तता के कारण मुझे मेरी जिज्ञासा को शान करने का अवसर नहीं मिला |
केंद्रीय हिंदी संस्था के हिंदी शिक्षण निष्णात के पाठ्यक्रम अनुसार वैक्ल्पिक प्रशन-पत्र - 8 के रूप में प्रयोजनमूलक हिंदी का चयन करने का अवसर मुझे मिला और मुझे अपनी जिज्ञासा को शांत करेने के लिए एक मार्ग प्रकाश में आया | इस प्रश्न पत्र के अंतर्गत परियोजना कार्य के रूप में कार्यालयी हिंदी के प्रयोग क्षेत्र टिप्पण शीर्षक पर परियोजना कार्य प्रस्तुत है |
मेरे इस परियोजना कार्य की मार्गदर्शिका आदरणीया सुश्री वीना माथुर, अध्यापक शिक्षा विभाग, केंद्रीय हिंदी संसथान की मैं बहुत आभारी हूँ, जिन्हों मुझे मार्गदर्शन दिया और मेरे जिज्ञासा को शांत करने में सहयोग दिया |
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से मुझे सहयोग देने वाले आप सभी का में आभारी हूँ | आप सब को धन्यवाद|
प्रयोजनमूलक हिंदी : कार्यालयी हिंदी के प्रयोग क्षेत्र टिपण्णी
ब हम प्रयोजनमूलक हिंदी की बात करते हैं तो हमें हिंदी के विविध रूपों को समझने की आवश्यकता पड़ती है | प्रश्न उठता है कि यह विविध रूप कौन कौन से हैं जबकि भाषा तो एक ही है, बिकुल भाषा तो एक ही है पर किसी भी भाषा के प्रकार्य स्थानानुसार परिवर्तित होते रहते हैं | हिंदी के विविध रूपों के अर्थ यह परिभाषित करते हैं कि अलग-अलग स्थितियों या स्थानों में बोली जाने वाली हिंदी का स्वरूप भी अलग-अलग होता है | सामान्य बोल चल की भाषा साहित्य या सृजनात्मक लेखन की भाषा से भिन्न होती है तो कार्यालयीन भाषा में औपचारिकता की अधिकता होती है
भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को केन्द्रीय संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकृति प्राप्त है, परन्तु व्यवहार में अंग्रेजी भाषा का बोल-बाला ज्यादा है। भाषा की राजनीति करने वाले राजनयिक अंग्रेजी के पक्ष में कितने भी तर्क देते रहें, इस देश का सामान्य-जन एक सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी भाषा का भाषिक संरचना, व्याकरण तथा अनुवाद के धरातल पर अध्ययन आज की एक परम आवश्यकता है। प्रयोजनमूलक, प्रयुक्तिमूलक तथा व्यावहारिक आदि सम्बोधनों से होनेवाला यह भाषिक अध्ययन ही हिन्दी को राष्ट्रभाषा के वास्तविक सिंहासन पर अधिष्ठित कराने का सही और सार्थक मार्ग बन सकता है।
प्रयोजनमूलक हिंदी के प्रवातक
डॉ. मोटूरी सत्यनारायण
कार्यालयी हिंदी के स्वरुप तथा विशेषताओं की जानकारी का संबंध कार्यालयी हिंदी के प्रयोग क्षेत्र से जुड़ा है | कार्यालयी में प्राप्त होने वाली पत्रादि को दर्ज करने से आरंभ होती है | उन पत्रादि को कारवाई के लिए प्रस्तुत किया जाता है; उन पर विचार किया जाता है, कुछ न कुछ निर्णय लिया जाता है, आवश्यकतानुसार उन का उत्तर दिया जाता है, आवश्यकतानुसार उन का उत्तर किया जाता है, उत्तर की प्रति भावी संदर्भ हेतु फाइल में संकलित की जाती है कार्यक्लायी में किए जाने वाले इस प्रकार के प्रयोगों की अध्ययन करना और प्रयोजनमूलक हिंदी के प्रयोग क्षेत्र की जानकारी होना आवश्यकत है और कार्यालयी हिंदी को मेरे इस अध्ययन का आधार बनाया है |
राजकीय, सरकारी , अर्ध सरकारी और सार्वजनिक उपक्रमों के कार्यालयों में व्यवहार में होने वाली हिंदी कार्यालयी हिंदी के प्रयोग क्षेत्र जैसे टिपण्णी, मसौदा, संक्षेप्त्न, अनुवाद, इत्यादि प्रयोगों को इस परियोजना कार्य के आध्याम से प्रस्तुत करना इस अध्यन का प्रमुख उद्देश्य है |
‘प्रयोजनमूलक हिंदी’ शब्द अंग्रेजी के ‘फंक्शनल हिंदी’ का पर्याय रूप है | वास्तव में यह अंग्रेजी के फंक्शनल लैंग्वेज का हिंदी रूपांतर है | प्रयोजनमूलक हिंदी आधुनिक भाषा विज्ञानं की अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञानं के अंतर्गत अत्याधुनिक उपशाखा के रूप में विकसित हुई है | ‘प्रयोजनमूलक हिंदी’ एक पारिभाषिक शब्द है जो भाषा की अनुप्रयुक्त और प्रायोगिक के निश्चित अर्थ में प्रयुक्त किया गया है |
प्रयोग के आधार पर भाषा के दो स्वरुप लक्षित होते हैं – सामान्य भाषा रूप तथा विशिष्ट भाषा रूप|
सामान्य भाषा रूप :
जिसका प्रयोग सामान्य रूप से दैनिक कार्यों में होता है |
विशिष्ट भाषा रूप :
जिसका प्रयोग सामान्य रूप से दैनिक कार्यों के अतिरिक्त विशिष्ट कार्यों में होता है और यह विशिष्ट रूप को ही हम प्रयोजनमूलक कहते हैं |
प्रयोजनमूलक हिंदी का विकास सन 1974 में आयोजित एक संगोष्ठी के बाद हुआ | प्रयोजनमूलक हिंदी का अविर्भाव श्री मोटूरी सत्यनारायण के प्रयोसों द्वारा ही हुआ है |
प्रयोजनमूलक हिंदी की परिभाषाएँ :
भारत के विभिन्न हिंदी विद्वानों ने प्रयोजनमूलक हिंदी की कई परिभाषाएँ दी हैं वे निम्वर प्रस्तुत हैं –
डॉ. मोटूरी सत्यनारायण :
जीवन की आव्यश्क्ताओं की पूर्ति के लिए उपयोग में लायी जाने वाली हिंदी ही प्रयोजनमूलक हिंदी है |
डॉ. रघुवीर सहाय:
प्रयोजनमूलक