कस्मंसश्ित्ग्रामे एकः कृपिः ्वपत््या सह ननवसनत ्म। त्य पत्नी त्माद् अपप अधधका कृपिा आसीत।् सः कृपिः
क्मैधित्एकम ्अपप रूप्यकं न प्रयच्छनत ्म।तैिव्यभयात््वगहृे दीपम ्अपप न प्रज्वाियनत ्म । प्रनतठदनं सायंकािात्पूवं
्वपपनत ्म।
एकस्मन्ठदने त्य कृपि्य मनलस एकः पविारः आगच्छत्।सः अधि्तयत्– “यठद अहं नगरं गलमष्यालम तठहि पवपुिं धनं
प्राप््यालम ।’’
(क) क्य भयात््वगहृे दीपम्अपप न प्रज्वाियनत ्म ?
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स्वागताम सुबह स्वागतम लक्ष्मी की कृपा से सब को अपने परिवार के साथ एक परियोजना के लिए जाने के बाद में पोशाक
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