कस्तूरी कुंडली बसे मृग ढूंढे बन माहि ऐसे घटि घटि राम है दुनिया देखे नाही .....PLZZ iska arth bta do koi...class 10
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कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।
कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥
हिरण की नाभि में कस्तूरी होता है, लेकिन हिरण उससे अनभिज्ञ होकर उसकी सुगंध के कारण कस्तूरी को पूरे जंगल में ढ़ूँढ़ता है। ऐसे ही भगवान हर किसी के अंदर वास करते हैं फिर भी हम उन्हें देख नहीं पाते हैं। कबीर का कहना है कि तीर्थ स्थानों में भटक कर भगवान को ढ़ूँढ़ने से अच्छा है कि हम उन्हें अपने भीतर तलाश करें।
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कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि।
ऐसे घटि घटि राम है दुनिया देखे नाही।।
भावार्थ : कबीर कहते हैं कि जिस तरह कस्तूरी मृग कस्तूरी की सुगंध की खोज में इधर-उधर भटकता रहता है, लेकिन उसे यह नहीं पता होता कि कस्तूरी तो उसकी नाभि में ही है। उसी प्रकार मनुष्य भी अज्ञानता के कारण ईश्वर की खोज में इधर-उधर भटकता है, जबकि उसे यह नहीं पता होता कि ईश्वर तो उसके अंदर ही वास करता है।