कस्तूरी कुंडली बसै , मृग ढूँढ़ाई बन माही -- अर्थ एक शब्द में बताओ|
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कुण्डली : नाभी
बसै : रहना।
मृग: हिरण।
बन : जंगल।
माहि: के अंदर।
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प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कबीरदास के दोहे’ से लिया गया है। इसके रचयिता कबीरदास हैं।
संदर्भ : यहाँ कबीरदास जी कहते हैं कि हमें प्रत्येक प्राणी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए, सच्ची भक्ति के साथ जीवन को सार्थक बनाना चाहिए, क्योंकि वही सच्ची भक्ति है।
स्पष्टीकरण : संत कवि कहते हैं कि मनुष्य ईश्वर को पाने के लिए इधर-उधर भटकता है, जब कि ईश्वर उसी के अन्दर या उसी के पास है। जैसे कि – कस्तूरी मृग की नाभि में ही है, पर मृग नहीं जानता और भ्रमित होकर सारे वन में उसे ढूँढ़ता फिरता है। इसी प्रकार घट-घट में राम समाया हुआ है, पर मानव उसे भ्रम के कारण देख नहीं पाता।
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